कपिलजी कहते है -माता,जो बहुत सहन करता है वाही संत बन सकता है। अतिशय विपत्ति में जो ईश्वर का अनुग्रह समझे,वही महान वैष्णव है।
तुकाराम के जीवन में आता है कि वे कभी क्रोधित नहीं होते थे। पत्नी कर्कशा थी।
एक दिन महाराज कथा करने गए थे। कोई भक्त ने आकर पूछा कि महाराज घर में है?
तुकाराम की पत्नी ने जवाब दिया-नहीं,उनका काम (व्यवसाय) ही क्या है?
पूरा दिन विठ्ठल -विठ्ठल करना और कथा करनी।इस विठ्ठल ने मेरा संसार बिगाड़ा है।
महाराज किसान के वह कथा करने गए थे। किसान ने खुश होकर गन्ने दिये।
घर आते समय रस्ते में जो जय श्रीकृष्ण बोले उनको गन्ने देते। घर आये तब एक गन्ना बाकी था।
उनकी पत्नी को पता चला तो गुस्से होकै वाही गन्ना उनसे लेकर उनको पीठ पर मारने लगी।
गन्ने के दो टुकड़े हो गए पर महाराज की शान्ति का भंग नहीं हुआ।
उन्होंने एक टुकड़ा अपनी पत्नी को दिया और कहा कि एक टुकड़ा तू खा और एक मै खाऊ।
महाराज की पत्नी का ह्रदय भर आया,
पति के चरण में सिर रखकर क्षमा माँगी और कहा -मै तुम्हे पहचान नहीं सकी।
उस दिन से उनका जीवन सुधरा है। संतो की सहनशक्ति अलौकिक होती है।
एक बार दुष्ट लोगो ने तुकाराम को गधे पर बिठाया और कहा कि हमारे तुम्हारी बारात निकालनी है।
महाराज ने सोचा कि मना करूँगा तो जबरदस्ती बिठाएंगे,उससे तो अच्छा अपने आप बैठ जाऊ।
तुकाराम की पत्नी को दुःख हुआ किन्तु तुकाराम तो बोले कि मेरे विठ्ठलनाथ ने मेरे लिए गरुड़ भेजा है।
उसी पर मै बैठा हूँ। सभी ने गधा देखा किन्तु तुकाराम की पत्नी ने गरुड़ देखा।
तुकाराम ने जीवन में अनेक चमत्कार देखे है,
उन्होंने खुद कोई चमत्कार नहीं किये। चमत्कार परमात्मा ने किये है।
जगत में सब कुछ सहते रहो।
जगत में अन्धकार का अस्तित्व है,अतः प्रकाश का मूल्य है।
संतो का पहला लक्षण तितिक्षा है तो दूसरा है करुणा। तीसरा लक्षण है,सभी देहधारियों के प्रति सद्भाव। अजातशत्रु,शान्त,सरल स्वभाव आदि संतो के लक्षण है।
शान्ति की परीक्षा प्रतिकूलता में होती है। अर्थ-धन-सम्पत्ति से तो प्रतिदिन सम्बन्ध रखते हो,किन्तु उसके साथ-साथ परमात्मा से भी सम्बन्ध रखोगे तो सम्पत्ति मिलेगी और शान्ति भी।
भागवतकार कहते है कि इस गाड़ी की केवल पटरी ही बदलनी है। ईश्वर के लिए कुछ न कुछ त्यागो।