Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-133-Skandh-4



स्कंध -4 (चतुर्थ स्कंध)


प्रथम स्कंध में अधिकार का वर्णन किया है। भागवत का श्रोता कैसा होना चाहिए वगेरे बताया है।
दूसरे स्कंध में ज्ञानलीला बताई है। मृत्यु जब समीप आ गई हो तब जीव कैसा व्यवहार करे ?
उस समय मनुष्य का क्या कर्तव्य है? आदि का ज्ञान गुरु ने द्वितीय स्कंध में दिया गया है।


तीसरे स्कंध में -गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान को क्रिया में और जीवन में किस प्रकार उतारना चाहिए ?
यह बात बताई गई है।
ज्ञान प्राप्त करना हो तो कर्दम के जैसा जितेन्द्रिय बनो। तो बुध्धि देवहूति मिलेगी ।
निष्काम बुध्धि से ज्ञान सिध्ध होता है। और ज्ञान सिध्ध होने के बाद,पुरुषार्थ सिध्ध होता है।


चौथे स्कंध में आती है चार पुरुषार्थ की कथा।
चौथे स्कंध में चार प्रकरण और इकत्तीस अध्याय है।
पुरुषार्थ चार है। धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष। इसलिए चार प्रकरण है।


धर्मप्रकरण के सात अध्याय है। सात प्रकार की शुध्धि होने पर धर्म को सिध्धि होती है। देश,काल,मन्त्र,देह,विचार,इन्द्रिय और द्रव्यशुध्धि।


अर्थ-प्रकरण के पाँच अध्याय है। अर्थ की प्राप्ति पाँच साधनों से होती है। माता-पिता के आशीर्वाद,गुरुकृपा,
उध्यम ,प्रारब्ध और प्रभुकृपा। इन पाँच प्रकार के साधनो से ध्रुव को अर्थ की प्राप्ति हुई थी।


काम-प्रकरण के ग्यारह अध्याय है क्योंकि काम ११ इन्द्रियों में  है। पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ,पॉंच कर्मेन्द्रियाँ और
ग्यारहवां मन। इन ग्यारह ठिकानों में काम बसा हुआ है। काम जीवमात्र को  रुलाता है।


मोक्ष प्रकरण के आठ अध्याय है। प्रकृत्ति के ८-प्रकार है। (अष्टधा प्रकृति)
५- महाभूत और मन,बुध्धि,अहंकार।
इस अष्टधा प्रकृति को काबु में रखे - उसे मोक्ष-मुक्ति मिलती है।
प्रकृति के बंधन में से जो मुक्त हुआ  वह कृतार्थ होता है।


ऐसे ३१ अध्याय का यह चौथा स्कंध है।


प्रकृति का अर्थ है स्वभाव। अनेक जन्मों के संस्कार मन में संचित रहते है। बड़े-बड़े ऋषि भी प्रकृति को अर्थात स्वभाव को वश में नहीं रख सके है। इसलिए बंधन में पड़े अष्टधा प्रकृति पर विजय पाने वाले को मुक्ति मिलती है। प्रकृति के वश जो होता है वह जीव है और जो प्रकृति को वश में रखता है वह ईश्वर है।
श्रवण,कीर्तन-आदि आठ प्रकार की भक्ति जिसकी सिद्ध होती ऐ वह ईश्वर का हो जाता है।


चार पुरुषार्थों में पहला धर्म है और अंत में मोक्ष। बीच में अर्थ और काम है। इस क्रम को  लगाने में भी रहस्य है। धर्म और मोक्ष के बीच में काम और अर्थ को रखा गया है।
यह क्रम ये,बतलाता है कि अर्थ और काम को धर्म के अनुसार प्राप्त करना है। धर्म और मोक्ष  मुख्य पुरुषार्थ है। बाकी के दोनों-अर्थ और काम -गौण है। धर्म के विरुध्ध कोई भी पुरुषार्थ सिध्ध नहीं होता।
सबसे पहला पुरुषार्थ धर्म है। धर्मानुसार ही अर्थ और काम की प्राप्ति करनी है।
पैसा मुख्य नहीं है,धर्म मुख्य है। मानवजीवन में धर्म प्रधान है। धन से सुख नहीं मिलता।
धर्म इसलोक और परलोक में सुख देता है।
मरने के साथ धन साथ नहीं जाता,धर्म ही साथ जाता है। अतः धन से धर्म श्रेष्ठ है।




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