Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-135


भाव-शुध्धि सबसे बड़ा तप है। जगत में किसी भी जीव के प्रति वैर मत रखो।
शुध्ध भावना से रहित किया गया सत्कर्म भी किसी काम नहीं आता। उससे कई बार धर्म से अधर्म बन जाता है। सत्कर्म करने में यदि हेतु शुध्ध नहीं हो,तो वह सत्कर्म भी पाप बन जाता है।


दक्ष प्रजापति ने शिवजी के प्रति कुभाव रखा अतः उसका धर्म अधर्म में बदल गया।
उसका यज्ञ उसको ही मारने वाला हो गया।


प्रत्येक मनुष्य के प्रति सद्भाव रखने से कार्य सफल होता है। सबका कल्याण हो यही सत्य -और -सत्कार्य है।
अनेक में एक का दर्शन करना ही सबसे उत्तम है। सभी में ईश्वर भाव रखो।
सब में समभाव रखना ही सबसे उत्तम धर्म है। सद्भाव का अर्थ है ईश्वर का भाव। सबमे जो ईश्वर का भाव रखता है वही सुखी होता है। किसी भी जीव में कुभाव रखने वाले का धर्म सफल नहीं होता।


महाभारत में हम देखते है कि श्रीकृष्ण कई बार अधर्म करते है।
किन्तु उनके मन में सबके लिए सद्भाव ही होता है,इसलिए उनका अधर्म भी धर्म बन जाता है।


महाभारत के कर्णपर्व और द्रौण पर्व में इसी विषय के दृष्टांत मिलते है।


कर्णपर्व में कहा गया है कि जिस समय कर्ण अपने रथ का पहिया जमीन से निकाल रहा था
और निःशस्त्र था उसी समय भगवान ने अर्जुन से कहा कि तू इस कर्ण को मार।
कर्ण ने कहा -युध्धशास्त्र का नियम है कि जब शत्रु निःशस्त्र हो उस समय उस पर प्रहार न करो।
अतः अर्जुन को मुझ पर प्रहार नहीं करना चाहिए।


तब श्रीकृष्ण कर्ण से कहते है -कर्ण,तुमने आज तक धर्म का कितना पालन किया है?
तुमने स्वयं तो धर्म का पालन किया नहीं है और दूसरो को धर्मपालन करने का उपदेश देते हो।
भरी सभा में द्रौपदी का अपमान किया गया उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था?


इसप्रकार द्रोणपर्व में भी कथा आती है। जब,द्रोणाचार्य पांडवोकी सेना का  विनाश कर रहे थे।
तब,श्रीकृष्ण ने सोचा कि यह बुढढा मरेगा नहीं तो अनर्थ होगा। इतने में अश्वत्थामा का हाथी मारा गया।
श्रीकृष्ण ने सोचा कि यदि द्रोणाचार्य को कहा जाये कि तुम्हारा पुत्र (अश्वस्थामा) मारा गया है तो
वे पुत्र शोक के कारण ये युध्ध बंद कर देंगे। यह सोचकर उन्होंने घोषणा करवा दी कि अश्वत्थामा मारा गया। द्रोणाचार्य ने सोचा की बेटा तो मारा गया है अब युध्ध  क्यों करू?
परन्तु यदि धर्मराज युधिष्ठिर कह दे कि अश्वत्थामाको  मार दिया गया है,तो मै सच मानू।


युधिष्ठिर से भगवान कहते है -बोलो,अश्वत्थामा मारा गया।
युधिष्ठिर कहते है कि राज्य के लिए मै असत्य क्यों बोलू? मुझे पाप लगेगा।
भगवान  ने कहा कि दुर्योधन पापी है। द्रोणाचार्य ब्राह्मण होकर पापी का साथ दे रहे है।
वे अगर युध्ध छोड़ दे तो उनसे ज्यादा अधर्म नहीं होगा।
इसलिए कहता हूँ कि बोलो “अश्वत्थामा हतः” भगवान के आग्रह से युधिष्ठिर को बोलना पड़ा।
असत्य  न लगे इसलिए वे उसके बाद बोले कि “नरो वा कुज्जरो वा”
परन्तु ये अंतिम शब्द किसी को सुनाई दे,इससे पहले प्रभु ने जोर से शंखनाद कर दिया।
अतः ये शब्द किसी को सुनाई न दिया।


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