अधर्म बनकर उसको (खुदको) ही मारने वाला बना। तो-
दूसरी तरफ श्रीकृष्ण का असत्य भाषण रूप अधर्म भी सबके के कल्याण के लिए धर्मरूप बन गया।
सबके प्रत्ये शुध्ध भाव और सद्भाव रखो। शुध्ध भाव रखना ही सबसे बड़ा तप है।
सद्भाव के बिना किया हुआ सत्कर्म सफल नहीं होता।
मैत्रेयजी विदुरजी से कहते है -
मनु भगवान के यहाँ तीन कन्यायें हुई। आकृति,देवहुति और प्रसूति।
उस मे-प्रसूति की शादी दक्ष प्रजापति से हुई थी।
देवहूति की शादी कर्दम से हुई। उनकी नौ कन्यायें हुई थी।
उन नौ कन्याओं की शादी नौ ब्रह्मर्षियों के साथ हुई थी।
उसमे एक अनसूया की शादी अत्रि से हुई थी। उनके तीन पुत्र हुए-दत्तात्रय,दुर्वासा और चन्द्रमा।
वे अनुक्रम से विष्णु,शंकर और ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न हुए थे।
विदुरजी पूछते है कि -इन सर्वश्रेष्ठ देवो ने अत्रि मुनि के यहाँ किस इच्छा से अवतार लिया था,वह कथा कहिये।
मैत्रेयजी कहते है -दत्तात्रेय अत्रि के घर ही आते है। पुरुष यदि अत्रि जैसा तपस्वी बने और स्त्री अनसूया जैसी तपस्विनी बने तो आज भी उनके घर दत्तात्रेय आने को तैयार है।
सत्व,राजस और तामस इन तीनों गुणों का जो नाश करे और निर्गुणी बने वह अत्रि है।
सत्व,राज और तम इन तीनो गुणों में जीव मिल गया है।
इन तीनों गुणों से जीव को अलग होना है। इन तीन गुणों को छोड़कर ब्रह्म सम्बन्ध करता है।
जो त्रिगुणातीत ब्रह्मस्वरूप को प्राप्त हुआ है,वह अत्रि है।
शरीर में जो तमोगुण है उसे रजोगुण से मारो। रजोगुण को सत्वगुण से मारो।
सत्कर्म से सत्वगुण बढ़ता है। पर,सत्वगुण भी बंधनकर्ता है। इसमें भी थोड़ा अहंभाव रह जाता है।
सत्वगुण का भी त्याग करके निर्गुणी बनो।
यदि जीव अत्रि हो तो बुध्धि अनसूया हो। असूया से रहित बुध्धि ही अनसूया है।
बुध्धि में सबसे बड़ा दोष असूया- मत्सर है।
दूसरो का भला देखकर ईर्ष्या करना,जलना यही असूया या मत्सर है।
जीव तीन गुणों का त्याग करके निर्गुणी बने और बुध्धि असुयारहित बने,तब ईश्वर प्रकट होते है।
अनसूया महान पतिव्रता है।
एक बार देवर्षि नारद कैलास में आये।
शंकर समाधि में थे। पार्वतीजी पूजन कर रही थी। पार्वतीजी ने नारद को लड्डू का प्रसाद दिया।
नारद कहते है-लड्डू बहुत अच्छे है लेकिन अनसूयाके घर के लड्डू इससे भी ज्यादा श्रेष्ठ थे ।
पार्वती ने नारद को पूछा -ये अनसूया कौन है?
नारदजी कहते है कि- आप पतिव्रता है मगर अनसूया महान पतिव्रता है।