"आज से प्रतिज्ञा करो कि पतिव्रता को कभी कष्ट नहीं दोगे। जगत की किसी भी स्त्री को नहीं सताओगे। "
इतने में अत्रि ऋषि पधारते है। ये तीन बालक कौन है?
अनसूया कहती है कि- ये तीन मेरे बालक है और ये तीन बालकों की स्त्रियां है।
अत्रि कहते है देवी!ऐसा मत कहो। ये तीन तो महान देवता है।
इसके बाद उनपर जल छिड़का और तीनों देवता प्रकट हुए।
तीनों देवता कहते है कि- आपके आँगन में हम बालक होकर खेलते थे। वह सुख सदा के लिए आप हमे देंगे।
इन तीनो देवताओं के तेज मिलकर दत्तात्रेय के रूप में वह तीनोंप्रकट हुए है।
जब यह जीव मांगता नहीं है,तब परमात्मा उसको अपने स्वरुप का दान करते है।
गुरु दत्तात्रेय मार्गदर्शन कराने वाले है। इसलिए उनका जन्म मार्गशीर्ष मास में हुआ है।
पहले अध्याय में कर्दम ऋषि की कन्याओं के वंश का वर्णन किया गया है।
दक्ष प्रजापति और प्रसूति के यहाँ सोलह कन्याए हुई।
उनमे से तेरह उन्होंने धर्म को,एक अग्नि को,एक पितृगण को और सोलहवीं "सती" शंकरजी को दी।
धर्म के तेरह पत्नियाँ कही गई है। उनके नाम है - श्रद्धा,दया,मैत्री,शान्ति,पुष्टि,क्रिया,उन्नत्ति,बुध्धि, मेधा,स्मृति,तितिक्षा,धृति,और मूर्ति।
इन तेरह गुणों को जीवन में उतारने से धर्म जरूर फलता है।
इन तरह गुणों के साथ ब्याह करोगे तो भगवान मिलेंगे।
धर्म की पहली पत्नी है -श्रध्धा। ईश्वर में श्रद्धा रखो। धरम की प्रत्येक क्रिया श्रध्धा से करो। श्रध्धा दृढ होनी चाहिए।
दृढ़ श्रध्धा भक्ति से,दृढ़ प्रेम से जड़ भी चेतन बनता है। जीव मात्र के साथ मैत्री रखो।
श्रीधर स्वामी ने कहा है -सबके साथ मैत्री रखना तो शक्य नहीं है पर यदि सबके साथ मैत्री न हो सके तो कोई हर्ज नहीं,मगए किसी के साथ वैर मत रखो। किसी के साथ वैर न करना भी मैत्री के समान ही है।
धर्म के तेरहवी पत्नी है मूर्ति। और उनके घर नर-नारायण प्रकट हुए है। नारायण के माता-पिता मूर्ति और धर्म है। मूर्ति में प्रेम रखो। जब मूर्ति को माता और धरम को पिता मानोगे,तो,उनके वहाँ नारायण का जन्म होगा।
दक्ष प्रजापति की छोटी कन्या "सती" का विवाह शिवजी के साथ हुआ था। (पार्वती शिवजी की दूसरी पत्नी है)
दक्ष प्रजापति ने शिवजी का अपमान किया,इसलिए सतीने अपना शरीर यज्ञ में भस्म कर दिया।
भगवान शंकर महान है। सचराचर जगत के गुरु है।
संत ज्ञानेश्वर ने ज्ञानेश्वरी में कहा है - जगत में जितने धर्म-सम्प्रदाय है उनके आदिगुरु श्रीशंकर है।
सभी धर्मो के आचार्य शिवजी है। इसलिए उनको गुरु मानकर मंत्र-दीक्षा लेनी चाहिए।
विदुरजी-मैत्रेयजीको पूछते है -देवो में सबसे श्रेष्ठ शिवजी के साथ दक्ष प्रजापति ने बैर किया,
इस बात को सुनकै बहत आश्चर्य होता है। यह कथा मुझे विस्तार से कहो।