Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-139


मैत्रेयजी कहते है-प्राचीनकाल में प्रयागराज में बड़ा ब्रह्मसत्र हुआ था। सभा में शिवजी अध्यक्ष के स्थान पर थे।
उस समय दक्ष प्रजापति वहाँ  आये। उस समय, शिवजी महाराज भगवान नारायण का ध्यान कर रहे थे।
दूसरे देवो ने उठकर उनको सन्मान दिया,परन्तु शिवजी खड़े नहीं हुए।
तो,उस समय क्रोध में आकर दक्ष ने शिवजी की निंदा कि।

श्रीधर स्वामी ने तो-उस दक्षकी  निंदा में भी स्तुति के अर्थ निकाले है।
श्रीमद भागवत मे सबसे उत्तम टीका श्रीधर स्वामी की मानी गई है। वे नृसिंह भगवान के भक्त थे।
दशम स्कंध में श्रीकृष्ण की शिशुपाल ने भी निंदा की है।
उसका श्रीधरस्वामी ने स्तुतिपरक अर्थ किया है,क्योंकि निंदा सुनने से भी पाप लगता है। निंदा नरक के समान है। जो व्यक्ति उपस्थित न हो,उसके दोषो के वर्णन करने को निंदा कहते है।
शिवजी की निंदा भागवत जैसे ग्रन्थ में शोभा नहीं  है।

दक्ष प्रजापति ने निंदा करते हुए कहा -”शिव श्मशान में रहने वाला है”.
परन्तु यह तो स्तुतिरूप है। सारा जगत स्मशान के समान है। काशी महान श्मशान है। देह भी श्मशान है।
इस प्रकार श्मशान का अर्थ है सारा जगत। अर्थात शिवजी संसार की हर एक चीज में विराजे हुए है।
सारा संसार श्मशान रूप है और शिवजी जगत के प्रत्येक पदार्थ में व्याप्त है,इसलिए वे व्यापक ब्रह्मरूप है।
जगत की प्रत्येक चीज में शिवतत्व है। ब्रह्मतत्व व्यापक है।

भगवान शंकर आशुतोष है। शिवजी के दरबार में हरेक को प्रवेश मिलता है।
ऋषि,दानव और भूतपिशाच भी आते है। शिवजी का दरबार सबके लिए खुला है।
रामजी के दरबार के दरवाजे पर हनुमानजी गदा लेकर खड़े रहते है -और कहते है कि -
जिसने मेरे रामजी के  तरह भाई पर प्रेम रखा हो,रामजी के तरह मर्यादा का पालन किया हो,
परस्त्री को माता समान माना हो,उसे ही अंदर जाने का अधिकार है।
रामजी की प्रत्येक मर्यादा का पालन करोगे तो रामजी के दरबार में प्रवेश मिलेगा।
श्रीकृष्ण के दरबारमें भी सबको प्रवेश नहीं है। और अमुक समयमे ही उनके दर्शन होते है.

पर शिवजी कहते है कि -तुझे जब समय मिले,तब आ। मै ध्यान धर कर बैठा हूँ।
जिसकी शिवजी की तरह अपेक्षा कम होती है,वही शिवजी की तरह  उदार बन सकता है।

एक बार कुबेर भंडारी शिवजी से पूछते है -आपकी क्या सेवा करू?
शिवजी कहते है -मुजे कोई सेवा नहीं चाहिए,मै तो,खुद,दुसरो की सेवा करता हूं.
और जो दुसरो की सेवा करता है वोही वैष्णव है। आप भी मेरी तरह “नारायण-नारायण”करो।
पर,माताजी ने (पार्वतीजी)ने कुबेर से कहा -मेरे लिए सुवर्णमहल बना दो।
कुबेर ने सुवर्णमहल बनवा दिया।
वास्तुपूजा किये बिना तो महल में प्रवेश नहीं किया जा सकता। वास्तुपूजा के लिए रावण को बुलाया गया।
रावण ने वास्तुपूजा कि। (रावण ब्राह्मण था किन्तु कर्मसे राक्षस था)

शिवजी ने रावण से कहा -जो मांगना हो वह मांगो। रावण कहता है कि  यह महल मुझे दे दो।
शिवजी  ने रावण को महल दे दिया.
पार्वती मन ही मन बोलती  है-कि-मै जानती  थी कि यह भोले-बाबा कुछ भी नहीं रहने देंगे।
पर,देनेवाला,माँगने वाले को नहीं दे,ये तो महात्माओके लिए मरने के समान  है।


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