Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-140


शिवजी तो महान उदार है,त्यागी है,तो उन्होंने  सुवर्णमहल रावण को दे दिया।
जब,महल मिला,तो, रावण का लोभ और जागा, रावण जैसा कोई मूर्ख नहीं हुआ है।
रावण ने कहा-महाराज महल तो दिया अब पार्वती को भी मुझे दे दो। शिवजी ने कहा- तुम्हे जरुरत हो तो ले जाओ।
भोले-बाबा ने तो पार्वतीजी का भी दान दे दिया.

रावण माताजी को कन्धे पर बैठाकर ले जा रहा है। पार्वती ने श्रीकृष्ण का स्मरण किया।
श्रीकृष्ण ग्वाल बनकर मार्ग में आये। उन्होंने रावण से पूछा-तुम किसे ले जा रहे हो?
रावण बोला -शंकर भगवान ने मुझे पार्वती दे दी है।
श्रीकृष्ण ने कहा -तू कितना भोला है?शिवजी क्या तुझे पार्वती देंगे?असली पार्वती को तो वे पाताल में छिपाकर रखते है। यह तो तुम्हे पार्वती की दासी दी है। दासी देकर तुम्हे बहला दिया है। असली पार्वती के शरीर से कमल की सुगंध आती है। इसके शरीर से क्या ऐसी सुगंध आती है?

रावण दुबिधा में पड़ गया। पार्वतीने शरीर से दुर्गन्ध निकाली। रावण ने उसी जगह पार्वती को छोड़ चला गया।  
बाद में उसी जगह प्रभु ने माताजी की स्थापना की-वह है द्वैपायनी देवी।

दक्ष,शिवजी की निंदा करते हुए बोलते है--शिव स्वेच्छाचारी तथा गुणहीन है।
श्रीधर स्वामी ने उसका अर्थ किया है कि-
प्रकृति के कोई भी गुण शिवजी में नहीं है,अतः वे निर्गुणब्रह्म विधिनिषेधातीत परमात्मा ही है।

दक्ष प्रजापति ने कहा - आज से किसी भी यज्ञ में दूसरे देवों के साथ शिव को आहुति नहीं दी जायेगी।
श्रीधर स्वामी ने अर्थ किया है -
यज्ञमें शिवजी की सब देवताओं के साथ आहुति नहीं कि जाती,किन्तु
शिवजी तो सभी देवों से श्रेष्ठ (महादेव) होने से-इत्तर देवो से पहले शिवजी को आहुति दी जाएगी
और यज्ञ के बाद जो बचेगा,वह भी समाप्ति में शिवजी को दिया जायेगा।

शिवपुराण में कथा है। शंकर और पार्वती की शादी हो रही थी।
विवाह के समय तीन पीढ़ी का वर्णन करना पड़ता है। शिवजी से कहा गया कि अपने पिता का नाम बताइये।
शिवजी सोच में पड़ गए। मेरे पिता कौन? (महारुद्र शिवजी का जन्म नहीं है। )
नारदजी ने कहा -बोलो मेरे पिता ब्रह्मा है। शिवजी ने कहा - मेरे पिता ब्रह्मा है।
फिर पूछा गया- तुम्हारे दादा कौन है?शंकर बोले-विष्णु दादा है। फिर पूछा गया - आपके परदादा कौन है?
यह सुनकर शिवजी बोले-मै सबका परदादा हूँ। शिवजी महादेव है।

सूतजी वर्णन करते है-राजन,शिवजी के मस्तक में ज्ञानरूपी गंगा थी,निंदा सुनकर भी सहन कर ली।

शंकर के मस्तक में ज्ञानगंगा है।
श्रीकृष्ण के चरणों में ज्ञानगंगा है,अतः वे शिशुपाल की निंदा सहन करते है।
प्रतिकार करने की शक्ति होने पर भी जो सहन करता है वही महापुरुष है। वह धन्य है।
जिसके सर पर ज्ञानगंगा हो,वाही निंदा सहन कर सकता है।

अतः शिवजी सभा में एक भी शब्द नहीं बोले।
उस सभा में नंदिकेश्वर बिराजे थे। उनसे ये सब सहा नहीं गया।
उन्होंने दक्ष को तीन शाप दिए। जिस मुख से तूने निंदा की है वह तेरा सर टूट जायेगा।
तेरे सर के बदले में बकरे का सर लगाया जायेगा और तुझको ब्रह्मविद्या कभी प्राप्त नहीं होगी।


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