Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-144


अज का दूसरा अर्थ है परब्रह्म। दक्ष के धड़ पर अज का मस्तक रखा गया
अर्थात दक्ष को परब्रह्म दृष्टी प्राप्त हुई। अज मस्तक का अर्थ है ब्रह्मदृष्टि।


दक्ष को होश आया और शिव की स्तुति करने लगा।
दक्ष प्रजापति ने शिवपूजन किया। उसने कहा -मै अपनी पुत्री सती के दर्शन करना चाहता हूँ।
शिवजी ने सती से पूछा-तू बाहर आना चाहती है? तब जगदम्बा ने इंकार किया।
बादमे वे हिमालय में "पार्वती" के  रुपसे प्रकट हुए।


शिवपूजन किया गया तो कृष्ण भगवान प्रकट हुए।
कृष्ण का मत है कि शिव में और मुझमे जो भेद रखता है वह नरकगामी होता है।
इस सिद्धांत का भागवत में अनेक बार वर्णन किया गया है।
हरि और हर में जो भेद किया था वह अब दूर हो गया।


एकनाथ महाराज ने भावार्थ रामायण में हरिहर का अभेद दिखाया है।
सत्वगुण का रंग श्वेत है। तमोगुण का रंग काला  है।
विष्णु भगवान सत्वगुण के स्वामी है। विष्णु भगवान (कृष्ण) सत्वगुण के है अतः उनका रंग श्वेत होना चाहिए
फिर भी वे काले है। ऐसा क्यों हुआ? विष्णु काले और शिवजी गोरे।


एकनाथ महाराज लिखते है -शिवजी सारा  दिन नारायण का ध्यान करते है और
नारायण हमेशा शिवजी का ध्यान करते है
इसलिए शिवजी को श्वेत रंग मिला और नारायण को शिवजी का काला  रंग मिला।


इस प्रकार ध्यान में ऐसा गुण  है कि  जिसका ध्यान करो उसका वर्ण मिलता है।
अतः दोनों में अभेद है। हरिहर एक है। ब्रह्म विध्या भी शिवकृपा के बिना नै मिलती।
जीव मात्र को शिवजी से मिलने की इच्छा होती है।


दक्ष के यज्ञ में देखा कि भक्ति का अर्थ यह नहीं है कि एक ही देव की पूजा करो।
अनेक में एक देव के दर्शन करो। प्रभु तो सर्वव्यापक है।
अपने एक इष्टदेव में परिपूर्ण भाव रखना और दूसरे देवों को अपने इष्टदेव का अंश मानकर वंदना करना।
दक्ष प्रजापति ने ने यज्ञ किया मगर उसने भेद-बुध्धि रखने के कारण शिवजी की पूजा नहीं की,
अतः उनके यज्ञ में विघ्न आया।


यह शरीर पंचायतन है। पांच तत्वों का यह शरीर रचा हुआ है। एक-एक तत्व का एक-एक देव है।
इस पंचायतन के पांच प्रधान देव  है।


१) पृथ्वीतत्व - गणेश। गणेश की उपासना से विघ्नों का नाश होता है। गणेश विघ्नहर्ता है।
२) जलतत्व - शिव। शिव की उपासना करने से ज्ञान मिलता है।
३) तेजतत्व- सूर्य। सूर्य की उपासना हमे निरोगी बनाती है। पृथ्वी पर सूर्य प्रत्यक्ष साक्षात देव है।
४) वायुतत्व - माताजी। माताजी की उपासना बुध्धि,शक्ति और धन देती है।
५) आकाशतत्व - विष्णु। विष्णु की उपासना प्रेम देती है और प्रेम बढाती है।


शिवजी  की पूजा से अच्छा आरोग्य मिलेगा। माताजी की पूजा से सम्पत्ति -बुध्धि मिलेगी।
और यह सब होने पर भी श्रीकृष्ण की सेवा न करोगे तो बात नहीं बनेगी। श्रीकृष्ण प्रेम के दाता है।


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