Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-148


इसीलिए उत्तानपाद राजा ने मुँह मोड़ लिया। ध्रुव ने हाथ बढाकर कहा- मुझे गोदमें बिठाइए।
तब,सुरुचि ने ध्रुव से कहा -तू गोद में बैठने लायक नहीं है। तेरी माँ रानी नहीं है। वह तो मेरी दासी है।
और दासी का पुत्र गोद  में बैठ नहीं सकता। राजा की गोद में बैठने की इच्छा है तो मेरी कोख से जन्म लेना होगा।
तू वन में जाकर तप कर और ईश्वर की आराधना करके मेरी कोख में जन्म लेने की मांग कर।

भगवान जब प्रसन्न होते है तो,फिर किसीके भी  पेट से जन्म लेने की क्या जरुरत है?
पर वह मुर्ख थी इसलिए ऐसा बोल रही थी।
ध्रुव रोता हुआ अपनी माता सुनीति के पास लौट आया।
ध्रुव ने सोचा कि मै सारी बात बताऊँगा तो परंपरा के कारण माता-पिता की निंदा करना पाप होगा।
तभी एक दासी ने आकर सारी बात बता दी।

माता सुनीति संस्कारी है। बालक पर ख़राब संस्कार न पड़े इसलिए दुःख को दबाया है।
वह चाहती थी कि अपने बालक को राज्य और संपत्ति चाहे न मिले किन्तु संस्कार अच्छे मिलने चाहिए।

अगर माता सुनीति हो तो अपने बालक को हजार शिक्षकोंसे भी अधिक शिक्षा दे सकती है।
सुनीति ने दुःख के आवेग को दबाकर धीरज से कहा -तेरी सौतेली माता ने वैसे तो कुछ बुरा नहीं कहा है।
उसने तुझे उपदेश दिया है वह अच्छा है और मै भी तुझे यही उपदेश देती हूँ।
बेटे, यदि भिक्षा मांगनी ही है तो फिर भगवान से ही क्यों न माँगी  जाए?

बेटे,भगवान तुझ पर कृपा करेंगे,तुझे प्रेम से बुलाएँगे,गोद में भी बिठाएंगे।
तेरे ही नहीं जीव मात्र के सच्चे पिता परमात्मा है।
मैने तुझे नारायण को सौंप दिया है। जो पिता तेरा मुँह तक देखना नहीं चाहता,उसके घर में पड़ा रहना निरर्थक है। इस घर में तू रहेगा तो सौतेली माँ तुझे हमेशा कष्ट देती रहेगी। किन्तु रोना नहीं,अन्यथा मुझे भी दुःख होगा।
तेरी विमाता ने तुझे वन में जाने के लिए कहा है, उसने  ठीक ही कहा है।  उसी में तेरा कल्याण है।

ध्रुव ने माता से कहा कि विमाता ने हम दोनों का अपमान किया है।
इस घर में न तो मेरा सन्मान है और न तो तेरा। क्यों न हम दोनों जाकर प्रभु का भजन करे?

सुनीति ने कहा-मै तो स्त्री हूँ। मेरे पिता ने तेरे पिता को मेरा दान किया है। मुझे उनकी आज्ञा में रहना है।
चाहे मेरा पति मेरा अपमान करे,मुझसे पति  का त्याग नहीं हो सकता। तू स्वतन्त्र है,मै परतंत्र हूँ।
मै तुझे अकेला नहीं भेज रही हूँ। तेरे साथ मेरे आशीर्वाद भी है। परमात्मा तुजे अपनी गोद में बैठाएंगे।
वे वन में तेरी रक्षा करेंगे। अतः तू वन में जा और परमात्मा की आराधना कर।
मेरे नारायण तुझे अपनी बाँहो में समां लेंगे।

किन्तु ध्रुव को अब भी डर लग रहा है। सुनीति ने कहा -तू अकेला नहीं है। मेरे नारायण तेरे साथ ही है।
वे तेरी प्रार्थना जरूर सुनेंगे। दिल लगाकर भगवान का भजन करना। ईश्वर को जो प्रेम से पुकारता है,
उसके समक्ष वे अवश्य प्रकट होते है। रास्ते में साधु महात्मा मिले तो तो उन्हें प्रणाम करना।

सुनीति ने सुन्दर उपदेश दिया है।
ध्रुव माँ की गोद में से खड़े होकर साष्टांग प्रणाम करके वन में जाने के लिए तैयार हुए।


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