Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-150


नारदजी ने पूछा-बेटा,तू कहाँ जा रहा है?
ध्रुवजी न कहा-भगवान के दर्शन करने के लिए वन में जा रह हूँ।
मेरी माता ने बताया है कि-मेरे सच्चे पिता नारायण है। मै उन्ही की गोद में बैठने के लिए जा रहा हूँ।

ध्रुव की बात सुनकर नारदजी ने उसकी परीक्षा लेनी चाही।
सद्गुरु परीक्षा लेने के बाद ही शिष्य को उपदेश देता है।
नारदजी ने कहा -अभी तो तू छोटा सा बच्चा है। यह तेरे खेलने-कूदने की अवस्था है,प्रभु के जप करने की नहीं।
तू बड़ा होकर सब सुख भुगतने के बाद वन में जाना।

तू चाहता है कि भगवान तुझे गोद में बिठाये,किन्तु बड़े-बड़े ऋषि-मुनि हजारों वर्ष की तपश्चर्या के बाद भी
उन्हें पा नहीं सके तो फिर तेरे जैसे बालक को तो वो कैसे मिलेंगे?
अतः यही अच्छा है कि तू अपने घर वापस चला जा।

ध्रुव ने ने कहा-जिस घर में मेरा अपमान हुआ है वहाँ मै नहीं रह सकता।
अपने पिताजी के सिंहासन पर न बैठने का मैंने निश्चय किया है।
इस जन्म में प्रभु के दर्शन करने का भी निश्चय मैने किया है। गुरूजी आप मार्गदर्शन कराये।

जो व्यक्ति अपना कल्याण चाहता है और धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष प्राप्त करना चाहता है
तो उसके लिए एकमात्र साधन है श्रीहरि के चरणों की सेवा।
ध्रुव के अटल निश्चय को देखकर नारदजी ने कहा - तू मधुवन में जा।

वृन्दावन में यह मधुवन है,जहाँ ध्रुवजी को नारायण के दर्शन हुए थे।
यमुना कृपालु है यमुना महारानी कृपादेवी  का अवतार है।
भागवत में कुछ ऐसे स्थानों का निर्देश है,जहाँ परमात्मा अखंड रूप से विराजते है।
नारदजी,ध्रुव को  कहते है कि-
मधुवन में परमात्मा विराजते है। यमुनाजी तेरा ब्रह्मसम्बन्ध सिध्ध करेगी। तेरे लिए सिफारिश करेगी।
चाहे अपात्र  भी हो पर जब-माता मानेंगी कि -वो परमात्माका हुआ है-तो वह कृपा करती है।

वृन्दावन प्रेम-भूमि है। वहाँ रहकर भजन करने से मन जल्दी शुध्ध होता है।
वृन्दावन दिव्य भूमि है। वहाँ जीव और ईश्वर का मिलन शीघ्र होता है।

ध्रुवजी ने कहा -वृन्दावन जाकर वह परमात्मा की आराधना किस प्रकार करनी है।
नारदजी ने कहा -ध्यान करने से पहले मानसी सेवा करना।
मानसी सेवा करते  समय मन की धारा -परमात्मा से कहीं  टूट न जाये,इसका ख्याल रखना।

मानसी सेवा श्रेष्ठ मानी गई है। इसमे सतत ईश्वर के साथ संलग्न  रहना चाहिए।


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