Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-151


मानसी सेवा के लिए उत्तम समय प्रातःकाल के समय-चार से  साढ़े पाँच बजे का।

प्रातःकाल उठकर ध्यान करो कि तुम गंगा किनारे बैठे हो। मन से ही गंगाजी में स्नान करो।
अभिषेक के लिए चांदीके कलश में गंगा जल लाओ,ठाकुरजी के जागने पर आचमन कराओ।
बालकृष्ण जब जागते है तो उनको भूख लगती है,तो उन्हें.माखन-मिसरी अर्पण करो।
फिर बालकृष्ण को स्नान कराओ। ठंडे जलसे नहीं,किन्तु,बालकृष्ण को थोड़े गरम जल से स्नान कराओ।
फिर ठाकुरजी को श्रृंगार करो। श्रृंगार से ही समाधि -सा आनंद मिलता है।
श्रृंगार के बाद भगवानको सुन्दर भोग लगाकर तिलक करो। फिर आरती उतारो।
आरती के समय- ह्रदय आद्र बनना चाहिए। इसलिए उस समय प्रभु दर्शन के लिए आर्त बनना चाहिए।

उसके बाद,प्रभु के जप और ध्यान करो. जप और ध्यान एक साथ होने चाहिए।
जप करते समय जिस देव का तुम ध्यान कर रहे हो,उसकी मूर्ति तुम्हारे मन से हटनी नहीं चाहिए।
जीभ से भगवान का नाम और मन से भगवान का स्मरण किया जाये।
आँखों से उनका दर्शन करो और कानो से उनका श्रवण।

नारदजी ने ध्रुव से कहा -मै तुम्हे एक मन्त्र दे रहा हूँ।
“ॐ नमः भगवते वासुदेवाय “
इस महामंत्र का तुम सतत जाप करते रहो। भगवान अवश्य प्रसन्न होंगे।
मेरा आशीर्वाद है। तुम्हे छ महीने में भगवान मिलेंगे।

ध्रुवको रास्ता दिखाके बादमे,नारदजी उत्तानपाद राजा के पास गए।
वियोग में सभी को बिछड़े व्यक्ति के गुणों की याद आती है।
उत्तानपाद पश्चाताप करते हुए बैठे है और ध्रुव के गुणों को याद कर रहे है।

नारदजी ने सोचा-चाहे  कुछ भी हो,किन्तु यह मेरे शिष्य का पिता है। मुझे इनका भी उध्धार  करना होगा।
वो सुरुचि के अधीन हो गया है।इन्द्रियों पर काबू करने के लिए, उनको भी साधना की जरुरत है.
इन्द्रियों में सबसे चंचल जीभ है,यदि पहले वह  जीभ को वश  में करेगा तो उसकी साधना सफल होगी।
और धीरे धीरे इन्द्रियों पर  पर काबू पाने से सुरुचि का मोह,अधीनता- कम हो जायेगा।

इसीलिए-उत्तानपादको नारदजी ने कहा- तुम छ मास  केवल दूध ही पीना। अनुष्ठान करना।
ऐसे,ध्रुवजी के वन में जाने के बाद और नारदजी के उपदेशसे,अनुष्ठान करके- राजा की बुध्धि  सुधरी।
सुरुचि को भी पश्चाताप हुआ -कि "सब अनर्थ का मूल मै हूँ।"और इसीलिए सुरुचि का जीवन भी,सुधरा है।

ध्रुवजी मधुवन में आए। पहले दिन उन्होंने अनशन किया और फिर अन्नका त्याग करके-
केवल फलाहार करके प्रति दिन एक आसान पर बैठकर एक महिने तक ध्यान किया। ।
(अन्नाहार से रजोगुण की और फलाहार से सत्वगुण की वृध्धि होती है।)

दूसरे महीने में और संयम किया। एक साथ छः दिनों तक ध्यान में बैठने लगे।
तीसरे महीने में एक साथ नौ दिन तक ध्यान करने लगे। फलाहार छोड़ दिया। केवल वृक्ष के पत्ते खाते।
चौथे मास में केवल यमुनाजल पीकर बारह दिन एक ही आसन  पर बैठकर जप किया।

पांचवे मास में जल भी छोड़ दिया और वायुभक्षण करके पंद्रह दिन तक एक ही आसान से जप करते रहे।


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