Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-153


स्तुति में आगे ध्रुवजी कहते है-कि-मेरी बुध्धि में प्रविष्ठ होकर उसे सत्कर्म की प्रेरणा देने वाले,
प्रभु को मै बार-बार वंदन करता हूँ।

ज्ञान का अंत श्रीकृष्ण के दर्शन में आता है। परमात्मा को जानने के बाद कुछ भी जानने का बाकी  नहीं रहता।
और उन्हें तभी जान सकते है जब प्रभु कृपा करते है। परमात्मा तभी कृपा करते है
जब कोई भी साधन करता मनुष्य -साधन का अभिमान छोड़-दीन  होकर रो पड़ता है।

उपनिषद  में कहा है -
आत्मा न तो वेदाभ्यास से मिलती है,न तो बुद्धिचातुर्य से मिलती है और न तो कई शास्त्रों के श्रवण से,
किन्तु (आत्मा) जिसका वह वरण करती है,उसी को इस आत्मा की प्राप्ति होती है।
आत्मा उसी को "स्वरूपदर्शन" कराती है।

साध्य (परमात्मा) की प्राप्ति होने के पश्चात कई लोग साधन (भक्ति-वगैरह) की उपेक्षा  करते है।
साधन की उपेक्षा करने से माया प्रविष्ट हो जाती है।
अद्वैत भाव की सिध्धि के पश्चात भी वैष्णव तो भगवान की भक्ति करता ही रहता है।
ईश्वर प्राप्ति हो जाने पर भी साधनाका त्याग मत करो। साधना की ऐसी आदत हो जाती है कि वह छूट नहीं पाती।

तुकाराम ने कहा है-
सत्संग से तुकाराम पाण्डुरंग जैसे हो गए है। अब उन्हें भजन करने की आवश्यकता नहीं है,
किन्तु तुकाराम को भजन करने की आदत ही ऐसी पड़ गई है कि भजन करना छूट ही नहीं पाता।
भक्ति व्यसन रूप बन जाये तो बेडा पार लग जाता है।
प्रभु ने ध्रुव से कहा -मै तेरी भक्ति से प्रसन्न हुआ हूँ। तू मुझसे जो चाहे वह मांग सकता है।
ध्रुव ने कहा -क्या मांगू और क्या नहीं,यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है। आपको जो भी प्रिय हो,वही मुझे दीजिये।

नरसिंह महेता के पर -भगवान शंकर जब प्रसन्न हुए ,तब उन्होंने वर मांगने को कहा ।
तब,नरसिंह महेता ने भी ध्रुव जैसा ही उत्तर दिया था-कि-आपको जो प्रिय हो वही मुझे दीजिए.
तो शिवजी ने कहा- कि मुझे तो रासलीला प्रिय है,अतः मै तुझे उसी के दर्शन कराऊँगा  
और शिवजी ने नरसिंह महेता को रासलीला के दर्शन कराये थे।

भगवान ने ध्रुवजी से कहा -
तू कुछ  कल्पों के लिए अपने राज्य का शासन कर। उसके पश्चात मै तुझे अपने धाम में ले चलूँगा।

तब,ध्रुवजी ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा -मुझे अपना पूर्वजन्म याद आ रहा है।
राजा-रानी के दर्शन से मेरा मन विचलित हुआ था,अतः मुझे यह जन्म लेना पड़ा।
अब जो राजा बना तो फिर रानीयोंकी माया में फंस जाउँगा और असावधान हो जाउँगा। मै राजा नहीं बनना चाहता।

प्रभु ने कहा -तू चिन्ता  मत कर। ऐसा कभी नहीं होगा। तेरी राजा बनने की इच्छा भले,ना भी हो,
फिर भी मै तुझे राजा बना हुआ देखना चाहता हूँ। यह माया तुझे प्रभावित नहीं करेगी।
मेरा नियम है कि जो मेरा पीछा करता है,मै भी उसी का पीछा करता हूँ। मै तेरी रक्षा करूँगा।


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