Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-156


पृथु ने भगवान से प्रार्थना की -
मै मोक्ष की इच्छा नहीं रखता क्योकि वहाँ आपकी कीर्ति की कथा सुनने का सुख नहीं मिल पाता।
मेरी तो एक ही प्रार्थना है कि  आपकी कथा के श्रवण के लिए मुझे दस हजार कान दें
कि जिससे मै आपकी लीलाकथा सुनता रहू।
आपके एक चरण की सेवा चाहे लक्ष्मीजी करे -किन्तु दूसरे चरणकी सेवा मै करना चाहता हूँ।

अश्वमेघ याग्न के बाद-वृद्धावस्था में पृथु राजा को सनत्कुमारों के उपदेश से-वैराग्य हुआ।
उन्होंने वन में जाकर तपश्चर्या कि- और स्वर्ग में गए।

इस पृथराजा के वंश में प्राचीनबर्हि राजा हुए और उनके वहाँ दस प्रचेता हुए।
प्रचेता नारायण सरोवर के आगे तप करते है।  उसके आगे कोटेश्वर महादेव है।
प्रचेताओं के लिए शिवजी वहाँ  प्रकट हुए है। शिवजी प्रचेताओं को रुद्रगीत का उपदेश देते है।
प्रचेताओं ने शिवजी के कहने पर वहाँ  दस हजार साल तप किया है।

नारदजी उस समय बहिराजा का पास आये है और प्रश्न किया -
तुमने यज्ञ तो अनेक किये है। क्या तुम्हे शान्ति मिली?
राजा ने कहा - नहीं।
नारदजी ने कहा -तो फिर तुम यज्ञ क्यों कर रहे हो?
राजा ने कहा -मुझे प्रभु ने बहुत दिया है अतः मै यज्ञ कर रहा हूँ। यज्ञ के द्वारा मै ब्राह्मणों की सेवा कर रहा हूँ।
यज्ञ के द्वारा मै सम्पत्ति का समाजसेवा में सदुपयोग कर रहा हूँ।

नारदजी ने कहा -जन्म-मृत्यु के चक्र से जीव मुक्त हो पाए,तभी पूर्ण शान्ति प्राप्त हो सकती है।
यज्ञ से तेरा कल्याण नहीं होगा। कल्याण के लिए चित्तशुध्धि आवश्यक है।
एकांत में बैठकर ध्यान करने की आवश्यकता है। याग्न से -तू स्वर्ग में जायेगा किन्तु जब तेरे पुण्योंका क्षय होगा,
तब,स्वर्ग से तुझे निकाल दिय जाएगा। केवल यज्ञ करने से ईश्वर का साक्षात्कार  नहीं होता।
शान्ति से बैठकर आत्मस्वरूप का चिंतन कर। शांतिपूर्वक ईश्वर की आराधना कर।

राजा ने कहा - आप बड़ा अच्छा उपदेश दे रहे है।
नारदजी कहते है -तुझेअपने स्वरुप का ज्ञान नहीं है। जो स्वयं के स्वरुप को पहचान नहीं सकता,
वह ईश्वर को कैसे पहचान सकेगा?
मै एक कथा सुनाता हूँ।ध्यान से सुन।तुझे अपने स्वरुप का ज्ञान होगा।

नारदजी कथा सुनाते है-
प्राचीनकाल में पुरंजन नाम का एक राजा था। उसके एक मित्र था अविज्ञात।
पुरंजन को सुखी करने के लिए अविज्ञात हमेशा प्रयत्नशील रहता था।
और अपने प्रयत्न की उसको भनक भी न पड़े,उसका भी वह ध्यान रखता था।


   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE