Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-160


प्रचेताओं का नारायण सरोवर के किनारे-रुद्रगीत के दस हजार साल के तप पुरे हुए है। और नारायण के दर्शन हुए है। नारायण ने आज्ञा दी कि अब तुम विवाह करो। प्रचेताओं ने कहा -हमे विवाह नहीं करना है।

परमात्मा उन्हें समझते है -विवाह करने के पहले सन्यास लोगे और फिर वासना जागेगी तो पतन होगा। विवाह के बाद विवेक से काम वासना भुगतकर और फिर उसका त्याग करने से सूक्ष्म वासना दूर होगी।

ईश्वर की माया दो तरह से जीव को मारती है। विवाहित भी पछताता है और अविवाहित भी।
गृहस्थाश्रम का वातावरण ऐसा होता है कि विषमता करनी ही पड़ती है।

तब,भगवान कहते है -एक काम करो -तो मै तुम्हारा रक्षण करूँगा।
रोज तीन घंटे,नियमपूर्वक मेरी सेवा,स्मरण करोगे तो मै तुम्हे पाप करने से रोकूंगा और रक्षा भी करूँगा।
एक साथ तीन घंटे भगवद-स्मरण करने वाले को भगवान पाप करने से रोकते है।
पाप करते समय मन को कुछ खट्टा-सा लगे तो मान लो कि प्रभु की साधारण कृपा हुई है।
पाप करने  की आदत छूट जाए तो समझो कि प्रभु की पूर्ण कृपा हुई है।

पाप न करना भी महान पुण्य ही है। पाप की माता है ममता और पिता लोभ। उनका अवश्य त्याग करो।

कोई भी कार्य बुध्धि और शक्ति के बिना नहीं हो सकता
और बुध्धि  तथा शक्ति ईश्वर की आराधना किए बिना प्राप्त नहीं हो सकती।
मनुष्य को चाहिए कि  कम-से कम तीन घंटे वह प्रतिदिन जप-स्मरण करे।

दुःख का कारण  मनुष्यका अपना स्वाभाव है। अनेक जन्मो से यह जीव पाप करता आया है।
पाप करने का स्वभाव भगवान के जप से,भगवान की कृपा होने से ही छूटता है।
गृहस्थों को प्रचेताओं की कथा द्वारा यह बोध दिया गया है।
मन के शुध्ध होने पर समझो कि प्रभु की कृपा हुई।

गृहस्थाश्रम में ममता मारती है। मिट्टी,पत्थर और कंचन को एक समान मानने  की द्रष्टि प्राप्त करनी चाहिए।
रांका -बांका जैसा वैराग्य होना चाहिए।

महाराष्ट्र में रांका और बांका  नाम के संत थे। धन का त्याग करके पति-पत्नी सरल जीवन जीते थे। जंगल में से लकड़ी काटके लाते और गुजरान करते। एक बार लकड़ी काट के वापस आ रहे थे। रांका आगे था और बांका पीछे। रास्ते में रांका ने सुवर्णहार पड़ा हुआ देखा। उसने सोचा कि हार को देखकर बांकाकी मति भ्रष्ट हो जायेगी।
उसने हार को धूल से ढँक दिया। उसे ऐसा करते देखकर बांका ने पूछा-तुम यह धूल क्यों इकठ्ठी कर रहे हो?
रांका ने कहा कि- कुछ नहीं है। किन्तु बांका को जब सच बात पता चली तो उसने कहा-
धूल को धूल से क्यों ढंक रहे हो? क्या अभी तक तुम्हारी दृष्टी में सुवर्ण और धूल दो भिन्न -भिन्न चीज़ है?
ऐसी भावना तुम्हारे मन में कैसे रह गई?

रांका ने कहा-तू मुझसे बढ़ गई। तेरा वैराग्य तो बांका है। और पत्नी का नाम ही बांका पड़ गया।
संतो के मन में धूल और सुवर्ण एक समान होते है। ऐसा ही अनासक्ति -भाव होना चाहिए।

किये हुए सत्कर्मो को,पुण्यों को भूल जाओ। किन्तु पापों को सदा याद रखो।


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