तुम शुध्ध आत्मा हो,जागृत,स्वप्न और सुषुप्ति,इन तीनो अवस्थाओं का साक्षी आत्मा है।
राजन,ज्ञानी जगत को सत्य नहीं मानते। संसार को वे मनःकल्पित मानते है।
जगत स्वप्न जैसा है। जिस प्रकार स्वप्न मिथ्या होने पर भी मनुष्य को रुलाता है,
उसी प्रकार यह मिथ्या जगत भी मनुष्य को (जीव को) रुलाता है।
मान लो कि एक मनुष्य सोया हुआ है। सपने में उस पर भयानक शेर हमला करता है।
वह डर जाता है और रोने लगता है,उसकी नींद उड़ जाती है।
जागने पर देखता है कि वह सपना था और सपने के शेर से वह डर गया था।
किन्तु स्वप्न असत्य है,यह बात मनुष्य को कब समझ में आएगी?
संसार भी स्वप्न की तरह मिथ्या है,ऐसा मनुष्य जब समजेगा - तब कि वह जाग जाता है।
कौन सा व्यक्ति जागा हुआ है?
विषयो में से जिसका मन हट गया है,वही जागा हुआ है।
राजन,सत्संग के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता। अपने स्वरुप का परिपूर्ण ज्ञान ही एक सत्य है।
एक ब्रह्म ही सत्य है। ब्रह्म सत्यस्वरूप,भेद से रहित,परिपूर्ण,आत्मस्वरूप है।
(जड़) भरतजी ने प्रथम राजर्षि को दिव्य तत्वज्ञान का उपदेश दिया और फिर भवाटवी का वर्णन किया।
ज्ञान और भक्ति को दृढ़ करने के लिए वैराग्य की जरुरत है। वैराग्य का उपदेश देने के लिए भवाटवी का वर्णन है।
जिस जीव का नेता(बुध्धि)असावधान और अपात्र है,उसे छ लुटेरे (इन्द्रियाँ )लूट लेते है।
उसका धर्मरूपी धन लूट जाता है।
भवाटवी के रास्ते में उन्हें हंसो की टोली मिलती है। (हंसो की टोली वह- परमहंसो की टोली है)
पर हंसो की टोली में उन्हें अच्छा नहीं लगता। उन्हें छोड़कर वे बन्दर की टोली में आते है।
इस टोली में उन्हें अच्छा लगता है। बंदरो के जैसा स्वेच्छारी जीवन उन्हें अच्छा लगता है।
आत्मा का विवेकरूपी धन एक-एक इन्द्रिय लूट लेती है। कोई संत मिलने पर संसाररूपी वन में से बाहर निकालते है। किसी संत का आशरा लोगे तो संसार-वन से बाहर निकल सकोगे।