Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-176


संक्षिप्त में यह संसार मार्ग दारुण,दुर्गम और भयंकर है।
इसलिए विषयों में मन को आसक्त किये बिना श्री हरि  की सेवा में तीक्ष्ण बनी  हुई तलवार से
यह संसार मार्ग पार करना है।  

भरतजी ने प्रथम शिक्षा दी और फिर ली  दीक्षा।
भगवताश्रयी का आश्रय लेने वाला कृतार्थ हो जाता है।
भरतजी ने प्रभु का ध्यान करते हुए शरीर का त्याग किया। उनको मुक्ति मिली।

इसके आगे भरतवंशी राजाओं का वर्णन है।
उसके बाद आता है भारत-वर्ष के उपास्य देवों और उपासक भक्तों का वर्णन।

भागवत में मानव शरीर की कई स्थानों पर निंदा की गई है।
मानव शरीर की स्तुति केवल पाँचवे स्कंध में है और वह भी देवों के द्वारा की गई है।
मानव शरीर मुकुंद की सेवा करने के लिए है। यदि मानव शुभ संकल्प करे तो वह नर से नारायण हो सकता है।

मनुष्य जन्म सभी पुरुषार्थो का साधन है,
ऐसा कहकर इस भारतवर्ष में जन्मे मनुष्यों की महिमा देवगन इस प्रकार गाते है -
अहो! इस भारतवर्ष के मनुष्यों ने कौन से पुण्य किए होंगे?
अथवा क्या श्रीहरि उन पर स्वयं प्रसन्न हुए होंगे कि
इन्होने भगवान की सेवा के योग्य मनुष्य जन्म इस भारतबर्ष में पाया है।
यह मनुष्य जन्म हरि की सेवा करने के लिए उपयोगी होने के कारण हम भी इसकी इच्छा करते है।
इस सौभाग्य के लिए तो हम भी सदा इच्छुक है।

इसके बाद आता है भौगोलिक वर्णन। इस खंड मे पृथ्वी के सात खंडो का वर्णन किया गे है।
सप्तदीप और सात समुद्रों का वर्णन है।

भरतखण्ड के स्वामी है देव नारायण
भरतखण्ड कर्मभूमि है। अन्य खंड भोगभूमि है। भरतखण्ड में जन्म लेने की इच्छा तो देवो को भी होती है।
ग्रहों की स्थिति -गति का वर्णन किया गया है।
सप्त पाताल का भी वर्णन किया गया है।
इन पातालों के नीचे है शेष नारायण।
नरक-लोक का भी वर्णन है। जितने पाप इतने नरक है।
कौन से पाप के  कारण  कौन से नरक में जाना पड़ता है,उसका क्रमबद्ध वर्णन इस स्कंध में किया गया है।

इस प्रकार हजारों नरक और यमलोक है,ऐसा बताकर पाँचवा स्कंध समाप्त किया है।


स्कंध-5-पाँचवा स्कंध - (स्थिति-लीला) समाप्त

   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE