Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-178


छठ्ठे स्कंध के तीन प्रकरण है -
(१)  ध्यान प्रकरण- चौदह अध्याय में ध्यान  वर्णन है। चौदह अध्याय का अर्थ है - पाँच कर्मेन्द्रिय,पाँच ज्ञानेन्द्रिय,मन,बुध्धि चित्त और अहंकार। इन सभी को परमात्मा के ध्यान में रत रखे,तो ध्यान सिध्ध होता है।

(२) अर्चन प्रकरण - दो अध्यायों में सूक्ष्म अर्चन और स्थूल अर्चन का वर्णन किया गया है।

(३) नाम प्रकरण - गुण-संकीर्तन और नाम-संकीर्तन का तीन अध्यायों में वर्णन है।

चाहे ज्ञानमार्गी हो या भक्तिमार्गी हो,किन्तु ईश्वर की साधना और ध्यान किये बिना काम नहीं बन पाता।
किसी एक में मन स्थिर होने पर मन की शक्ति बढ़ती है।
इस प्रकार तीन साधन बताये गए है -ध्यान,अर्चन और नाम।

इन तीन साधनों के सहारे पाप का नाश होता है और नरक में जाने से भी बचा जा सकता है।
प्रभु के मंगलमय स्वरुप का ध्यान जप करने की आदत डालो और नियमित सेवा करो।
ये तीन साधन तुम्हारे लिए शक्य न हो,तो किसी भी एक साधन पर अटल श्रध्धा रखो।

कलियुग में स्वरूपसेवा शीघ्र फलदायी नहीं हो सकती। स्वरुपसेवा उत्तम है,किन्तु उसमे पवित्रता की बड़ी आवश्यकता है और मानव ऐसा पवित्र रह नहीं सकता। अतः कलियुग में नामसेवा ही मुख्य कही गयी है।

अदृश्य वस्तु  का नाम जपने से उस नाम का स्वरुप प्रकटेगा।
प्रत्यक्ष साक्षात्कार होने तक प्रभु का नामाश्रय लेने वालेको एक-न-एक दिन प्रभु का साक्षात्कार होगा।

सीताजी ध्यान में इस प्रकार नाम-स्मरण करती थी कि वृक्षों के पत्ते-पत्ते से राम ध्वनि होती थी।

परमात्मा के नाम में निष्ठां का होना बड़ा कठिन है। नाम में अटल निष्ठां रखो।
परमात्मा के नाम का जप करने की आदत डालोगे तो मृत्यु भी उजागर होगी।
नाम निष्ठां के सिवा कलिकाल में अपना उध्धार का अन्य कोई उपाय नहीं है।

रामनाम से तो पत्थर भी तैर गए थे,किन्तु राम द्वारा डाले गए पत्थर नहीं तैरे थे।
एक बार रामचन्द्रजी के मन में कुतूहल उत्पन्न हुआ।
उन्होंने सोचा कि मेरे नाम से पत्थर तैरे थे और वानरों ने समुद्र पर सेतु बनाया था।
मै भी देखू कि मेरे स्पर्श से पत्थर तैरते है या नहीं।
यह सोचकर कोई भी जान न पाए,इस तरह वे समुद्र किनारे पर आये और उन्होंने समुद्र में पत्थर फेंके,
किन्तु वे सब पानी में डूब गए। रामजी को आश्चर्य हुआ कि ऐसा क्यों हुआ?मेरा नाम लिखने से तो पत्थर तैरे थे।

हनुमानजी ये कौतुक छिपकर देख रहे थे।
रामचन्द्रजी जब निराश होकर लौटते थे, तो हनुमानजी ने रास्ते में रोककर उनके दर्शन किये।
रामचन्द्रजी ने पूछा -मेरे नाममात्र से पत्थर तैर गए पर जब मैने स्वयं पत्थर फेंके तो सब डूब गए।
आखिर ऐसा क्यों हुआ?


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