Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-180


माया हमारा पीछा न करे। उससे बचना है और ईश्वर के पीछे लगना है।
हम ईश्वर का पीछा करेंगे तो माया हमारा पीछा छोड़ देगी। माया का स्पर्श करते समय सावधान रहना चाहिए। संसार में रहते हुए माया का त्याग करना कठिन और अशक्य है।
संसार में से जिसका मन हट जाए -उसका मन माया से भी हट जायेगा।

जीव कृतार्थ नामस्मरण से होता है जिस तरह अजामिल कृतार्थ हुआ।
अजामिल नाम का एक ब्राह्मण कान्यकुब्ज देश में रहता था।
अजा का अर्थ - माया और माया में फंसा हुआ जीव ही अजामिल है।
अजामिल पहले मंत्रवेत्ता,सदाचारी और पवित्र व्यक्ति था।
अजामिल एक बार वन में दुर्वा -तुलसी लेने गया। रास्ते में उसने एक शूद्र को वेश्या के साथ काम-क्रीड़ा करते देखा। वेश्या का रूप और दृश्य देखकर अजामिल कामांध हुआ वेश्या का रूप देखकर उसका मन भ्रष्ट हुआ।

अजामिल ने एक ही बार वेश्या को देखा,फिर भी उसका मन भ्रष्ट हो गया।
तो प्रति रविवार को फ़िल्म देखने वाले के मन का क्या होता होगा?
कई लोगों ने तो नियम सा बना लिया है कि प्रति रविवार को फ़िल्म देखनी।
वे अपने छोटे बच्चे को भी साथ  ले जाते है। अपना जीवन तो बिगड़ा ही है,और दूसरो का भी बिगाड़ना है।

पाप प्रथम आँख द्वारा आता है। आँख बिगड़ी तो मन बिगड़ा और मन बिगड़ा तो जीवन भी बिगड़ेगा और नाम भी। रावण बहुत बलवान था पर उसकी आँख बिगड़ी थी -उससे उसका जीवन बिगड़ा।
जो भी पाप आता है वह आँख से आता है और आँख बिगड़ने से मन बिगड़ता है।

अजामिल वेश्या में आसक्त था। घर का सारा धन बेचकर वेश्या को देने लगा।
माता-पिता के मरने के बाद उसे समझाकर अपने घर ले आया। वह पापाचार करने लगा।
एक बार कुछ साधुजन घूमते-फिरते अजामिल के घर आये। वेश्या ने देखा कि संत आये है तो उसने अन्नदान किया। साधु नहीं जानते थे कि वह वेश्या थी। भोजन करने का बाद जब उन्हें पता चला तो बहुत दुःख हुआ।
सच्चे साधु जिसके घर का अन्न ग्रहण करते है,उसका कल्याण भी करते है।

अजामिल घर आया। वेश्या के कहने पर उसने साधु को प्रणाम किया।
साधुओं ने कहा कि  तेरे घर से भोजन तो मिल गया पर दक्षिणा अभी तक बाकी है।
अजामिल ने कहा- मेरी यही दक्षिणा है कि  मैंने आपको लूटा नहीं है। मै किसी भी साधु को धन नहीं देता।
और कुछ मांगो तो दूँगा।

वेश्या सगर्भा थी। साधुओं  की इच्छा थी कि  अजामिल ब्राह्मण होने पर भी पाप करता है तो उसका कल्याण हो। उन्होंने कहा -तेरे घर पुत्र का जन्म होने पर तू उसका नाम नारायण रखना।
अजामिल ने कहा-महाराज मे अपने पुत्र का नाम नारायण रखु उसमे तुम्हे क्या लाभ होगा?
साधुओ ने कहा -हमारे भगवान का नाम नारायण है। अतः यह नाम से तुझे भगवान का स्मरण होता रहेगा।

अजामिल के घर पुत्र का जन्म हुआ तो उसका नाम नारायण रखा। अजामिल बार-बार नारायण को पुकारता था। नारायण नाम लेने की उसकी आदत पड़  गई।

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