Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-181


अजामिल ने बहुत पाप किये थे। अभी बारह वर्ष बाकि थे कि यमदूत लेने आ गए। मृत्युकाल समीप आ गया है। अजामिल घबराया। घबराहट में उसने अपने पुत्र के प्रति आसक्ति के कारण नारायण-नारायण कहकर बुलाया।
नारायण तो नहीं आया पर वहाँ विष्णुदूत आ पहुँचे। उन्होंने यमदूत से कहा कि अजामिल को छोड़ दो।

यमदूतों ने कहा -अजामिल का चरित्र भ्रष्ट है,अतः वह जीने के लिए अपात्र है।
विष्णुदूतो न कहा -यह सच है कि अजामिल ने पाप किया है किन्तु भगवान का नाम लेकर इसने अपने पापों का प्रायश्चित भी किया है। इसलिए उसके पाप जल गए है,अतः अब इसे जीने दो।
उसके आयु के बारह वर्ष अभी शेष है।

यमदूतों ने कहा -अजामिल ने “नारायण नारायण”तो कहा है,
किन्तु वैंकुंठवासी नारायण को नहीं,अपने पुत्र को ही पुकारा है।
विष्णुदूतो ने कहा -अनजान से भी उसके मुख से प्रभु का नाम निकला है।
ज्ञान हो या अज्ञान हो पर वस्तु-शक्ति काम करती है।
अनजाने में भी अगर अग्नि पर पैर गिर जाये तो भी जलन होती है।
इसी प्रकार अनजाने में भी अगर प्रभु का नाम लिया जाये तो  उसका कल्याण होता है और फल मिलता है।

बड़े-बड़े महापुरुष भी जानते है कि संकेत से,परिहास से,तान के आलाप  लेने से,किसी को एवोईड करनेमें भी -
यदि प्रभु के नाम का उच्चारण हो जाए ,तो उसके पाप नष्ट होते है।
जो मनुष्य गिरते समय,पैर के फिसलने पर,अंगभंग होने पर,चोट लगने पर या -
ऐसी कोई भी विवशता में भगवान का नाम का उच्चारण करे तो वह नरक की यातना का पात्र नहीं रहता।

गिर जाने पर चोट लगने से हाय-हाय मत करो, हरि -हरि करो।
स्टोव पर जब भूल से दूध की उभान बाहर आती है तो माताएं हाय-हाय करके चिंता करती है।
हाय-हाय करने से कुछ नहीं होगा।
इसके बदले हरि -हरि करो तो तो अग्नि में आहुति होगी और यज्ञ का फल मिलेगा।

वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि मृतात्मा के पीछे “हाय-हाय”अधिक करने से मृतात्मा को कष्ट होता है,
उसे दुःख होता है। हरि -हरि बोलने से उसका फल मृतात्मा को मिलता है।

विष्णुदूतो ने अजामिल को यमदूतों के बंधन से मुक्त किया और उसका उध्धार हो गया।

आयुष्य बाकी  हो और मृत्यु आए -वह अपमृत्यु
आयुष्य पूरा होने पर मृत्यु आए - वह महामृत्यु
महामृत्यु टल नहीं सकता। अपमृत्यु टल सकता है। अजामिल का मृत्यु टल गया।

अजामिल बिस्तर में सोया हुआ यह सब सुन रहा था। यह सब सुनकर उसे खूब पश्चाताप हुआ।
ह्रदय से प्रायश्चित करने केकारण उसके सरे पाप जल गए।
उसके बाद से वह सब कुछ छोड़कर भगवद स्मरण करने लगा।

पश्चाताप करने से अति पापी का भी जीवन बदल जाता है। वह सुधरता है। प्रायश्चित चित्त की शुध्धि करता है।
अजामिल की बुध्धि अब त्रिगुणात्मिका प्रकृति से परे होकर भगवान के स्वरूप में स्थिर हो गई।
उसे लेने प्लेन लेकर पार्षद आये। नाम में निष्ठां रखने का यही फल है।


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