Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-182


भक्ति में जीभ मुख्य है। जीभ पर परमात्मा का नाम स्थिर होने पर जीभ सुधरती है।
जीभ को समझानेसे या दंड देनेसे वह सुधरेगी। वह श्रीखंड मांगे तो उसे कड़वे नीम का रस दो।
जीभ को कहो- तुम व्यर्थ का भाषण अधिक करती हो। निरर्थक बक-बक करती रहती हो,भगवान का नाम कभी नहीं लेती हो। जीभ को यदि नीम का कड़वा रस पिलाओगे तो उस पर राम का नाम बस जायेगा।
सात्विक आहार और कम बोलने से भी धीरे-धीरे जीभ सुधरती है।

भगवद-भक्ति करने वाले को इहलोक और परलोक दोनों में मान प्राप्त होता है।
भगवान का नाम लेने से अजामिल भगवद्-धाम  में पहुँच गया। भगवान के नाम से वह तैर गया।
अजा का अर्थ पहले माया कहा था। पर अब भगवद-नामका सहारा लेने पर अजा का अर्थ हो गया ब्रह्म।
आज अजामिल आज-ब्रह्म के साथ मिलकर ब्रह्मरूप हो गया। आज जीव और शिव एक हो गए।
ऐसे,अजामिल शब्द के दो अर्थ है- (१) माया में फंसा हुआ जीव और  (२)  ब्रह्मरूप हुआ जीव।

माया का वर्णन तो कई तरह से किया गया है। श्रीमद शंकराचार्य ने माया की व्याख्या करते हुए कहा है कि -
कंचन और कामिनी में जो फँसा हुआ है वह मायामें  फँसा है।

शंकराचार्य के मणिरत्नमाला में प्रश्नोत्तर अति उत्तम है। उसके एक एक शब्द में उपदेश भरा हुआ है।
  • बन्धन-युक्त कौन है? जो पाँच विषयों में आसक्त है।
  • स्वतन्त्र कौन है? जो विषयों की ओर वैराग्य की दृष्टि रखने वाला है।
  • घोर नरक कौन सा है? स्वदेह ही घोर नरक है।
          (इस देह की सुन्दरता नहीं है, यह तो मांस,रक्त और दुर्गन्धयुक्त पदार्थों से भरा हुआ है। )
  • स्वर्ग के सौपान कौन से है? सभी तृष्णाओं का क्षय ही स्वर्ग का सौपान है।
  • दरिद्र कौन है? जिसकी तृष्णा विशाल है।
  • श्रीमन्त कौन है? जो सदा के लिए सम्पूर्ण संतोषी है।
  • कौन सा रोग अधिक कष्टदायी है? जन्मधारण का रोग ही अत्यधिक कष्टदायी है
  • रोग की औषधि क्या है? परमात्मा के स्वरुप का बार-बार चिंतन और स्मरण करना ही इस भवरूपी रोग की औषधि है।

अब अजामिल का दूसरा अर्थ देखे। अज का अर्थ है ईश्वर। ईश्वर में,ब्रह्म में विलीन हुआ जीव ही अजामिल है। साधारण मनुष्य समझाने से नहीं सुधरता। उसे सज़ा होने से सुधरता है।
पाप का पश्चाताप होने से पाप कम होते है। मन्त्र जप पाप का प्रायश्चित है।

"श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेव।"
यह महामंत्र है। अर्थ और ज्ञान सहित इस मन्त्र का जाप करो। यह मंत्रका अर्थ ऐसा है.
कृष्ण- हे प्रभो! आप सभी के मन को आकर्षित करने वाले है,अतः आप मेरे मन को भी आकर्षित कीजिये।
गोविन्द - इन्द्रियों के रक्षक भगवन,आप मेरी  इन्द्रियों को स्वयं में लीन करे।
हरे - हे दुःखहर्ता,मेरे दुःखो का भी हरण करे।
मुरारे - हे मुर राक्षस के विजेता,मेरे मन में बसे हुए काम-क्रोधादि राक्षसों का नाश कीजिये।
हे नाथ -आप नाथ है और मे आपका सेवक।
नारायण- मै नर हूँ और आप मेरे नारायण है।
वासुदेव -वसु का अर्थ है अर्थ है प्राण। मेरे प्राणों की रक्षा करे। मैने अपना मन आपके चरणों में अर्पित कर दिया।


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