प्रजापति दक्ष ने हंसगृह्य स्तोत्र से आदिनारयण भगवान की आराधना की तो उसके वहाँ दस हज़ार पुत्र हुए।
दक्ष ने उन्हें प्रजा उत्पन्न करने की आज्ञा दी -
किन्तु नारायण सरोवर के जल स्पर्श के कारण उनकी परमहंस धर्म का आचरण करने की इच्छा हुई।
वहाँ उन्हें नारदजी मिल गए। नारदजी ने दक्ष के दस हज़ार पुत्रों को कूट प्रश्न पूछे।
उन प्रश्नो का उत्तर इन पुत्रों ने सोच निकाला।
यहाँ हम नारदजी के थोड़े कूट प्रश्न और उसके उत्तर देखेगे.
प्रश्न - ऐसा कौन सा देश है,जहाँ केवल एक ही पुरुष है?
उत्तर -एक ईश्वर-रूप पुरुष इस देहरूप देश में बसता है।
प्रश्न - ऐसी कौन सी जगा है,जिसमे प्रवेश तो किया जा सकता है किन्तु बाहर नहीं आया जा सकता ?
उत्तर - प्रभु के चरण। वहाँ से वापस नहीं आ सकते।
प्रश्न - वह कौन सी नदी है जो परस्पर विरुध्ध दिशा में बहती है।
उत्तर - संसार। संसाररूपी नदी में प्रवृत्ति विषयों की और खींचकर ले जाती है और
निवृत्ति प्रभु के प्रति बहाकर ले जाती है।
प्रश्न - सिर पर जो चक्र मंडरा रहा है,वह कौन सा चक्र है?
उत्तर - सभी जीवो के सिर पर कालचक्र मंडराता रहता है।
ऐसे-नारदजी के कूट प्रश्नो की चर्चा - विचारणा करते हुए दक्ष के वे दस हज़ार पुत्र मोक्षमार्ग की ओर प्रवृत हुए,
सभी को नारदजी ने सन्यास की दीक्षा दी।
जब दक्ष के सभी पुत्र मोक्षमार्ग की और प्रवृत हुए तो उन्होंने दस हज़ार पुत्र और उत्पन्न किये।
वे भी नारदजी के उपदेश से निवृत्ति-परायण हो गए।
ऐसा होने पर प्रजापति दक्ष ने क्रोधावश में नारदजी को शाप दिया कि -
तुम कभी एक स्थान पर रह नहीं पाओगे,तुम्हे हमेशा भटकते रहना पड़ेगा।
नारदजी ने दक्ष के शाप को स्वीकार किया और दक्ष से कहा -
मै तुम्हे शाप के बदले में वरदान देता हूँ कि तुम्हारे घर बहुत-सी पुत्रियां होंगी,
अतः उन्हें सन्यास देने का प्रश्न ही नहीं रहेगा।
शुकदेवजी कहते है -राजन,फिर दक्ष के घर साठ कन्याओं का जन्म हुआ। इनमे से अदिति के घर बारह संतान हुई। इनमे से एक का नाम था त्वष्टा। प्रजापति त्वष्टा के वहाँ पुत्र हुआ विश्वरूप।
एक दिन जब इन्द्र सिंहासन पर बैठे थे तो वहाँ बृहस्पति आए।
सारे देवो के गुरु बृहस्पति के आने पर भी इन्द्र ने आसान से उठकर उनका स्वागत नहीं किया।
बृहस्पति मान की अपेक्षा रखते है धन की नहीं।
ऐसे अपमान के कारण बृहस्पति ने देवो का त्याग किया और इंद्र को शाप दिया कि तू दरिद्र बनेगा।
यह अवसर अच्छा है मानकर दैत्यों ने देवो के साथ युध्ध शुरू किया। उन्होंने स्वर्ग जीत लिया।
पराजित देवगण ब्रह्मा के पास पहुँचे। ब्रह्माजी ने कहा -ब्राह्मण का अपमान करने से आप दरिद्र हुए हो।
अब कोई ब्रह्मनिष्ठ ब्राह्मण को गुरु मानकर बृहस्पति को गद्दी पर बैठाओ।