Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-187



नारदजी चित्रकेतु राजा को जमुना के किनारे ले गए और चित्रकेतु को दिव्य ज्ञान दिया।
उन्हें संकर्षण मंत्र और तत्वोपदेश दिया।
चित्रकेतु राजा ने फिर तपश्चर्या की और भगवान के नामके मंत्रके जप किये। अतः उन्हें भगवान के दर्शन हुए।
उनके सारे  पापों का क्षय हुआ। वे महाज्ञानी और महासिध्ध हुए। भगवान ने उन्हें अपना पार्षद बनाया।

एक दिन चित्रकेतु आकाश में विहार कर रहा था। घूमता-घूमता कैलाश में आया।
वहाँ उन्होंने पारवती को शिव की गोद में बैठे हुए देखा। यह देखकर उनके मन में कुभाव जागा।

चित्रकेतु ने सांसारिक (विषय) भाव से शिव-पार्वती को देखा।
इस चरित्र से स्पष्ट होता है कि बिना ज्ञान की भक्ति व्यर्थ है। मात्र सगुण  के साक्षात्कार से मन शुध्ध नहीं होता। सगुण और निर्गुण भक्ति के होने पर ही जीव शिव बन सकता है।

शिव-पार्वती के इस प्रकार बैठने का एक कारण था।
एक बार कामदेव ने  शिव के साथ युध्ध  करने की फिर इच्छा बताई।
शिवजी ने कहा कि मैंने एक बार तो तुझे जला दिया है।  
कामदेव ने कहा कि-उस समय आप समाधिमें थे,और मुझे  समाधि में जलाया उसमे कोई बड़ी बात नहीं है।
समाधि अवस्था में तो कोई भी जीव मुझे जला सकता है। मेरे मन में अभी भी थोड़ी आकांक्षा है।
आप पार्वतीजी को अभी आलिंगन दो और मै  बाण मारू।
यदि आप उस समय भी निर्विकार रहे तो मै मानूंगा कि आप निर्विकार है।

शिवजी तैयार ही गए। पारवती को आलिंगनबध्ध करके वे अर्धनारीश्वर,नटेश्वर बन गए।
काम ने उन्हें विचलित  करने की पूरी कोशिश की किन्तु सफल नहीं हुए। शिवजी निर्विकार रहे।
कामदेव ने पराजय स्वीकार की और शिवजी के शरण में आ गए।

शिव-पार्वती निर्विकार थे पर चित्रकेतु की आँख में विकार था।
चित्रकेतु भक्त है-पर भक्ति और ज्ञान का साथ नहीं है। इसलिए वह शिवजी के निंदा करते है।
किसी को लौकिक भाव से देखोगे तो मन में विकार उत्पन्न होगा और विकृत चित्र मन में उभरेंगे।

इस प्रकार लौकिक  भाव से देखने के कारण चित्रकेतु का पतन हुआ।
शिवजी को बुरा नहीं लगा। जिसके सिर पर गंगा-ज्ञानगंगा हो,उसे निन्दारस प्रभावित नहीं कर सकता।
किन्तु पार्वती के लिए यह बात असह्य थी।
उन्होंने चित्रकेतु को शाप दिया- उद्धत,तेरा अब असुरयोनि में जन्म होगा।

चित्रकेतु पार्वती से क्षमा-याचना करने लगा।
तो देवी ने कहा -दूसरे जन्म में तुझे अनन्य भक्ति प्राप्त होगी और तेरा उध्धार होगा।


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