Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-189-Skandh-7



स्कंध-7-सप्तम स्कंध -  (वासना लीला)

छठे स्कंध में पुष्टि-अनुग्रह की कथा कही गई थी।
भगवदनुग्रह के पश्चात विकार वासना को नष्ट करके -भगवद अनुग्रह (भक्ति) का यदि सदुपयोग किया जाए
तभी वह भगवद अनुग्रह पुष्ट हो पाता  है। और उसका दुरूपयोग करने से वह दुष्ट बनता है।

अब इस स्कंधमें -आती है हिरण्यकशिपु और प्रह्लाद की कथा।
हिरण्यकशिपु ने सारी संपत्ति का उपयोग भोग-विलास में किया इसलिए वह बना दैत्य।
प्रह्लाद ने समय और शक्ति का उपयोग प्रभु की भक्ति करने में किया,अतः वह बना देव।

सातवे स्कंध में वासना के तीन प्रकार बताये गए है। -(१) असद वासना (२) सद  वासना (३) मिश्र वासना।

सातवे स्कंध के आरम्भ में परीक्षित राजा ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न  पूछा -
आप कहते है कि ईश्वर सर्वत्र है और वह समभावसे व्यवहार करते है।
यदि ऐसी बात है तो जगत में विषमता क्यों दृष्टिगोचर हो रही है?
चूहे में ईश्वर है,बिल्ली में भी। तो फिर बिल्ली चूहे को क्यों मारकर खाती है।

ईश्वर सभी में समभाव से रहते है तो फिर ये विषमता क्यों उत्पन्न करते है?
वे यदि समभावी है तो फिर बार-बार देवो का पक्ष लेकर वे दैत्यों को क्यों मारते है?
भगवान की द्रष्टिमें यदि सभी प्राणी समान है तो उन्होंने इन्द्र के लिए वृत्रासुर का वध क्यों किया?

शुकदेवजी कहते है - राजन,तुमने प्रश्न तो अच्छा किया पर तुम प्रश्न की जड़ में नहीं गए।
परमात्मा की "क्रिया" में भले ही विषमता हो किन्तु "भाव" में समता है।
समता "अद्वैतभाव" में होती है,"क्रिया" (कर्म)  में समता संभव नहीं है।
क्रिया (कर्म) से तो विषमता ही रहेगी। अतः भाव से (अद्वैत या एक भावसे) समता रखनी चाहिए।

उदहारण से- घर में माता,पत्नी,संतान आदि होते है। पुरुष इन सभी के प्रति प्रेम तो एक समान ही रखता है,
किन्तु सभी के साथ एक समान वर्ताव नहीं कर सकता। वह माता को वंदन करेगा,पर पुत्र को नहीं।

प्रेम आत्मा के साथ करना होता है,देह के साथ नहीं। भावना के क्षेत्र में अद्वैतभाव होना चाहिए।
समदर्शी (सबमे समान द्रष्टि से परमात्मा का दर्शन करना) बनना है,समव्यवहारी नहीं।
समव्यवहारी (सब के साथ समान व्यवहार) होना तो सम्भव नहीं है।
भागवत को आदिभौतिक साम्यवाद मान्य नहीं है,मात्र आध्यात्मिक साम्यवाद ही मान्य है।

शुकदेवजी कहते है - राजन,भगवान की दो शक्तियाँ  है। निग्रह शक्ति और अनुग्रह शक्ति।
निग्रह शक्ति से राक्षसो को मारते है और अनुग्रह शक्ति से देवो का कल्याण करते है।
राजन,तुम्हे लगता है कि- देवो का पक्ष  लेकर भगवान ने असुरो का नाश किया
परन्तु उन्होंने यह  संहार तो असुरो पर कृपा कर के हेतु से ही किया था।


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