Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-192



अहंकार को मारना कठिन है,विवेक से ममता का नाश हो सकता है किन्तु अहंभाव का नहीं।
पर यदि अर्पण करने वाला व्यक्ति अपना “मेरापन” प्रभु को अर्पित कर दे,तो ठाकुरजी कृपा करते है।
"मुझमे अभिमान नहीं है"  ऐसा मानना भी अभिमान है।

हिरण्यकशिपु अंहकार का रूप है। अभिमान सभी को सताता और  रुलाता है। देहाभिमान दुःख का कारण  है। ममता तो शीघ्र मर जाती है किन्तु अंहकार शीघ्र नहीं मरता। वह न तो रात को मरता है और न तो दिन में।
वह न तो घर में मरता है और न तो घर के बाहर। वह न तो शस्त्र से मरता है और न तो अस्त्र से।
उसे मध्य स्थान में ही मरना पड़ता है। मनुष्य यदि अहंकार को नष्ट कर दे तो वह ईश्वर से दूर नहीं रहेगा।

अभिमाना अंदर ही समाया हुआ रहता है। मनुष्य को दुःख यही देता है। इस अहंकार को मारना है।
वह दरवाज़े की दहलीज पर ही मरेगा।
जैसे कृष्ण-कथा में कहा गया है कि- हर दो गोपियों के बीच में  श्रीकृष्ण है।
इसी प्रकार यदि तुम दो वृत्तियों के बीच में श्रीकृष्ण को रखोगे तो तुम्हारे अहंकार का नाश होगा।

एक संकल्प के समाप्त होने तथा दूसरी वृत्ति के उत्पन्न होने के पहले यदि श्रीकृष्ण को रखोगे
तो तुम्हारे अहंकार का नाश होगा।
प्रत्येक इन्द्रिय का मिलन  जब परमात्मा के साथ नहीं हो पाता ,तब तक अहंकार बना ही रहता है।

ज्ञान सुलभ है,किंतु जब तक अहंता और ममता नष्ट न हो पाये तब तक ज्ञान  शोभा नहीं देता।
हिरण्यकशिपु ज्ञानी तो था किन्तु उसका ज्ञान अहंभाव और ममता से भरा हुआ था।
अपने भाई की मृत्यु के अवसर पर भी उसने ब्रह्मोपदेश किया।
हिरण्यकशिपु अन्य लोगो को तो ज्ञानोपदेश देता रहता था,
किन्तु स्वयं यह सोचता था कि अपने भाई के हत्यारे से मै कैसे बदला लू।
हिरण्यकशिपु ने तप करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। और उनसे दो वरदान मांगे।
मुझे कभी वृद्धावस्था नहीं आये। और मै कभी नहीं मरू। मुझे अमर बनाओ।

ब्रह्माजी ने कहा -हरेक को मरना तो पड़ता है। जन्मे हुए के लिए मृत्यु  निश्चित है। कुछ और मांग।

हिरण्यकशिपु ने कहा -आपको मुझे अजर-अमर होने का वरदान तो देना ही पड़ेगा।
मै रात  को  न मरू,दिन में न मरू,जड़ और चेतन से न मरू,अस्त्र और शस्त्र से न मरू ऐसा वरदान दो।

ब्रह्माजी ने सोचा -हिरण्यकशिपु ने खूब तपश्चर्या की है। वरदान तो देना ही पड़ेगा।
इसलिए उन्होंने अमरत्व का वरदान दिया।

अब हिरण्यकशिपु इतना शक्तिशाली हो गया कि उससे सभी देव पराभूत हो गए।
देवों ने दुःख के मारे प्रभु से प्रार्थना की। भगवान ने कहा कि जब भी मेरे प्रिय भक्त दुःखी होते है मै अवतार लेता हूँ। देवो को भगवान ने आश्वासन दिया कि जब हिरण्यकशिपु अपने पुत्र से शत्रुता करेगा और उसकी हत्या करने के लिए तत्पर होगा,तब मै अवतार लूँगा और हिरण्यकशिपु का वध करूँगा।

दूसरी तरफ हिरण्यकशिपु के घर प्रह्लाद का जन्म हुआ। प्रह्लाद धीरे धीरे बड़े होते है।
सभी को आनन्द -प्रह्लाद देने वाले - इसलिए उनका नाम प्रह्लाद रखा गया।


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