Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-193



दैत्यों के गुरु थे शुक्राचार्य। उनके शंड और अमर्क  नाम के दो पुत्र थे।
जब प्रह्लाद पॉँच साल के हुए तो हिरण्यकशिपु ने शण्डामर्क को बुलाकर उनसे कहा कि -
मेरे पुत्र को राजनीति की शिक्षा दो।
शण्डामर्क प्रह्लाद को राजनीति  सिखाते है। किन्तु प्रह्लाद तो गर्भवास के समय से ही भक्ति के रंग में थे।
वैसे तो भक्ति का रंग शीघ्र लगता नहीं है,
पर जब एक बार लग जाता है तो फिर सांसारिक प्रवृत्तियों के प्रति वैराग्य आता है।
मीराबाई ने कहा है कि मेरे कृष्ण का रंग श्याम है और श्याम रंग पर किसी और रंग का प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रह्लादजी जन्म से ही भक्ति के रंग में रंगे  हुए थे।
वे गुरूजी की शिक्षा लेते थे किन्तु राजनीती का चिंतन जरा भी नहीं करते थे।
गुरूजी ने सोचा कि यह राजपुत्र बड़ा तेज है,अतः उसकी शिक्षा से प्रभावित होकर उनके पिता उन्हें कुछ-न-कुछ पुरस्कार देंगे। वे प्रह्लाद को लेकर राजसभा में आये। प्रह्लाद ने पिताजी को प्रणाम किया। पिताजी ने गोद में बिठाकर प्यार से पूछा-बेटा ,गुरूजी ने तुझे जो पढ़ाया है उसमे से तुझे जो उत्तम पाठ याद है वह बोल।

प्रह्लाद ने सोचा कि पिताजी तो उत्तम पाठ की बात पूछते है और गुरूजी ने तो मारकाट की बात सिखाई है।
वह मै कैसे बता सकता हूँ? अतः उन्होंने पिताजी को अच्छी सी बात सुनाई -
अँधेरे कुएँ के सामान यह घर ही अपने अधःपतन का मूल कारण है। जीवों के लिए यही श्रेयस्कर है कि
वे  गृहत्याग करके वनवासी बने औए वहाँ भगवान श्रीहरि का आश्रय ग्रहण करे।

प्रह्लाद कहेते है- -पिताजी,अनेक जन्मों के अनुभव से मै यह कह रहा हूँ  कि -
यह जीव कई बार स्त्री,पुरुष,पशु पंछी बना है।
हजारों जन्मो से प्रभु से  बिछड़ा हुआ यह जीव लौकिक सुखोपभोग में लीन है।  फिर भी वह अतृप्त है।
तृप्ति भोगने से नहीं,त्याग से ही प्राप्त होती है। संसार तो दुःख  का सागर है। प्रत्येक जीव व्यथित है।
पाप और पुण्य के समान होने पर यह मानव देह प्राप्त होता है।
जैसे यह पाप भोगना पड़ता है वैसे ही पुण्य भी भोगना  पड़ता है। संसार प्रतिक्षण परिवर्तनशील है।

स्वार्थ और कपट के सिवाय इस जगत में और कुछ भी नहीं है। फिर भी अविवेकी जीवको समज आती नहीं है।
निःस्वार्थ प्रेमी सिर्फ परमात्मा ही है,अन्य सभी का प्रेम स्वार्थ और कपट से भरा हुआ है।
संसार में रहकर कपट और छल करना ही पड़ता है।
पति- पत्नी के प्रेम में भी स्वार्थ और कपट होता है। जीव कितना स्वार्थी है?

एक स्त्री रो रही थी। रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि मेरी सास ने चेतावनी दी है कि  तीन  पुत्रियाँ काफी है। अगर चौथी बार भी पुत्री को जन्म दिया तो तुझे घर से बाहर निकाला जायेगा।
वैसे पुत्र आये या पुत्री,किसी के बस की बात नहीं है। पुत्र एक ही कुल का उध्धार करता है -
जब कि सुयोग्य पुत्री तो पिता और पति दोनों के कुल का उध्धार करती है।

दुर्भाग्यवश यदि पत्नी बीमार पड़े  तो वह  चार-पाँच हजार का खर्च कर देगा,दो-चार वर्ष प्रतीक्षा भी करेगा।
फिर भी अगर बीमारी ठीक न होए तो वह ठाकुरजी की मनौती रखेगा कि इसको कुछ हो जाये तो अच्छा हो।
"कुछ होने का मतलब मर जाना।"  वह सोचता है कि मेरी आयु भी अधिक नहीं है। ४८ वा साल शुरू हुआ है।
मेरा कारोबार भी ठीक -ठीक चल रहा है,अतः दूसरी पत्नी तो मिल ही जाएगी।


   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE