Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-195



थोड़े दिनोंके  बाद हिरण्यकशिपु ने फिर से प्रह्लाद को पूछा -
बेटा,गुरूजी से तुमने जो शिक्षा प्राप्त की है उसके बारे में कुछ कहो -
प्रह्लाद ने कहा - पिताजी,विष्णु भगवान की भक्ति के नौ प्रकार है।
भगवान के नाम-गुण -लीला आदि का श्रवण,कीर्तन,उनके स्वरुप-नाम आदि का   स्मरण,चरणसेवा,
पूजा-अर्चा,वंदन,दास्य,सख्य और आत्म-निवेदन।
भगवान के प्रति समर्पण भाव से यह नवधा भक्ति करना ही सर्वोत्तम अध्ययन  है,ऐसा मै मानता हूँ।
प्रभु के प्रसन्न होने से जीवन सफल होता है।

यह सुनकर  हिरण्यकशिपु क्रोधित हुए और उसे गोद से फ़ेंक दिया।
उसने सेवको को आज्ञा दी कि इस बालक को मारो। यह मारने के योग्य ही है। यह मेरा शत्रु है।
आज्ञा पाते ही सेवक प्रह्लाद को मारने दौड़े।

प्रह्लाद की दृष्टि  दिव्य थी। उसे तलवार में भी कृष्ण के दर्शन हुए।
दैत्य प्रह्लाद को मारने लगे फिर भी उन्हें जरा भी दुःख नहीं हुआ।
उसे मारने के कई उपाय किये गए पर फिर भी उन्हें कुछ नहीं हुआ।  
हिरण्यकशिपु  को आश्चर्य हुआ। उन्होंने दैत्यों को आज्ञा दी कि -
प्रह्लाद को अँधेरी कोटरी में बंद कर दो। वहाँ अन्न-जल के अभाव  से वह मर जाएगा।

प्रह्लाद को बन्दी बनाया गया। वह सोचते है कि मेरे भगवान मेरे साथ है फिर मुझे किसका डर।
यहाँ मै  शांति से भजन-कीर्तन करूँगा।
भागवत -प्रेम में जो लीन है उसे संसार का कोई भी विकार प्रभावित नहीं करता।

आज ठाकुरजी ने लक्ष्मीजी से पूछा कि  जगत में कोई जीव भूखा तो नहीं रह गया है न?
लक्ष्मीजी ने कहा कि आपका भक्त प्रह्लाद कैद में भूखा बैठा है।
भगवान ने कहा -देवी,उसके लिए शीघ्र ही प्रसाद भेजो। लक्ष्मीजी ने पार्षदों  को आज्ञा दी है।
पार्षदों  ने आकर प्रह्लाद से  कहा कि लक्ष्मीजी ने तुम्हारे लिए प्रसाद भेजा है।

प्रह्लाद ने प्रणाम किया। मेरे लिए प्रभुजी ने कारागृह में प्रसाद भेजा। भगवान को मेरी कितनी चिंता है।
शायद मै भगवान को भूल जाऊ पर मेरे भगवान मुझे नहीं भूलते।

हिरण्यकशिपु के सेवकों को आश्चर्य हुआ है। अंदर से केसर-कस्तूरी की सुघंध आ रही है।
यह तो जादूगर लगता है। उन्होंने जाकर हिरण्यकशिपु से यह बात कही।
हिरण्यकशिपु ने आकर  देखा तो वह  सोने की थाली में मिठाई खा रहा है।
उसने पुत्र से पूछा -प्रह्लाद सच बता कि यह भोजन तुझे किसने दिया?
प्रह्लाद ने कहा -माता के गर्भ में जिसने मेरा पोषण किया था,वही यहाँ मेरा पोषण कर रहा है।

हिरण्यकशिपु सोचने लगे कि यह किसी भी उपाय से मरता नहीं है। कहीं मुझे मारने के लिए तो नहीं आया है?
वह घबराकर शण्डामर्क के पास गया।

राजा का निस्तेज मुख देखकर शण्डामर्क ने आश्वासन देते हुए कहा-पाँच साल का बालक भला  तुम्हे कैसे मार सकता है। हम उसे रस्सी  से बांध देंगे। चार महीने के बाद शुक्राचार्य आने वाले है।
फिर वो जो आज्ञा देंगे वैसे आप करना। शण्डामर्क प्रह्लाद को रस्सी से बांधकर घर लाये है।

एक बार गुरूजी बाहर गए थे। तब प्रह्लाद ने बाहर खेलते बच्चे को भगवत धर्म का उपदेश दिया।
मित्रो,इस संसार में मानव जन्म अति दुर्लभ है। इसके सहारे तो परमात्मा की भी प्राप्ति हो सकती है।
किसी को पता नहीं है कि इस शरीर का अंत कब आएगा। अतः बुद्धिमान लोग यौवन और वृध्धदावस्था का विश्वास न करे और बाल्यावस्था से ही प्रभु-प्राप्ति के लिए साधन करे।
शरीर अनित्य है,नाशवंत है-पर इस शरीर से नित्य परमात्मा के दर्शन होते है। भगवान की प्राप्ति हो सकती है। मनुष्य शरीर -मनुष्य-जन्म दुर्लभ है। यह शरीर खूब किंमती  है।
कई बार जन्म-मरण की पीड़ा सहता हुआ जीव इस शरीर में आया है।


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