Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-196



एक बार एक गरीब  किसान को एक लाख का किमती हीरा  मिला।
उसे पता नहीं है कि यह सच्चा और किमती हीरा है। सो उसने अपने बेटे को खेलने  के लिए दे  दिया।
किसान के घर में एक लाख का हीरा  है  फिर भी वह गरीब  और दुःखी है।

वैसे ही मनुष्य जीवन की किंमत -जब तक समझ न आये तब तक उसके साथ खेलता है।
मनुष्य शरीर अति किमती  है। पहले मनुष्य की आयु सौ साल की कहलाती थी आज वैसी बात नहीं रही है।

आज तो आधी आयु निद्रावस्था में,चौथे-चौथे  भाग की आयु बाल्यावस्था और कुमारावस्था में बीत  जाती है। बाल्यावस्था अज्ञान में और कुमारावस्था खेलकूद में बीत  जाती है।
वृद्धावस्था के वर्ष भी निरर्थक ही होते है क्योकि शारीरिक क्षीणता के कारण कुछ काम नहीं होता।
यौवन के वर्ष कामभोग में गुजर जाते है। तो अब कितने कम वर्ष शेष रहे ?
और इन शेष वर्ष में आत्मकल्याण की साधना कब और कैसे होगी?
अतः व्यक्ति को चाहिए कि वह हमेशा आत्मकल्याण की प्रवृत्ति करे।

जब तक यह शरीररूपी गृह स्वस्थ है,वृध्दावस्था का आक्रमण नहीं हो पाया है,
जब तक इन्द्रियों की शक्ति क्षीण नहीं हुई है,आयुष्य का क्षय भी नहीं हुआ है।
तब तक में सयाने  मनुष्य को अपने आत्मकल्याण का प्रयत्न कर लेना चाहिए।
अन्यथा घर में आग लग जाने पर कुआँ खोदने से क्या लाभ होगा?

हमारे मस्तिष्क पर कई प्रकार के भय घेरे हुए रहते है।
अतः यह शरीर,जो भगवत-प्राप्ति के लिए पर्याप्त है,वह,रोगग्रस्त बनकर मृत्युवष हो जाये,
उसके पहले ही  आत्मकल्याण करने का प्रयत्न बुद्धिमान लोगों  को करना चाहिए।

वैसे तो मनुष्य दुःख नहीं मांगता,फिर भी वह अचानक आकर खड़ा रहता है।
कोई ऐसी मनौती नहीं रखता कि मुझे बुखार आएगा तो मै सत्यनारायण की कथा कराऊँगा।
फिर भी बुखार तो आता ही है।
प्रयत्न के बिना जिस तरह प्रारब्धानुसार दुःख आता है उसी प्रकार सुख भी आता है।
सुख और दुःख दोनों प्रारब्ध के आधीन है। प्रारब्ध के अनुसार ही वे प्राप्त होते है। इनके लिए प्रयत्न अनावश्यक है। पूर्वजन्मों का फल है प्रारब्ध। इसलिए सुख-दुःख के लिए प्रयत्न मत करो। प्रभु को पाने के लिए प्रयत्न  करो।

सत्कर्म में प्रयत्न प्रधान है,प्रारब्ध नहीं। सत्कर्म में बाधा  डालने की शक्ति प्रारब्ध में नहीं होती।
मनुष्य की अपनी दुर्बलता के कारण  ही प्रभुभजन में बाधा उपस्थित होती है।

बालकों ने प्रह्लाद से पूछा -परमात्मा को प्रसन्न कैसे किया जाये?
प्रह्लाद ने कहा- सभी में एक ही  परमात्मा के दर्शन करो।
जगत को प्रसन्न करना कठिन है,पर कृष्ण को प्रसन्न करना सरल है।
इसलिए अपने दैत्यत्व,असुरी संपत्ति,असुरी भाव का त्याग करके सभी प्राणियों के प्रति दया रखो।
प्रेम से उनकी भलाई करो। इसी से भगवान प्रसन्न होंगे।
भगवान जब कृपा करते है तो मनुष्य की पाशवी बुध्धि नष्ट हो जाती है।


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