Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-197



भगवान को प्रसन्न करने का दूसरा साधन है -कीर्तन -नाम ही ब्रह्म है।
ईश्वर का निर्गुण स्वरुप अति सूक्ष्म है।
मन,बुध्धि जब तक अति-सूक्ष्म नहीं हो पाते,तब तक ईश्वर के निर्गुण स्वरुप का अनुभव नहीं हो सकता।
ईश्वर का सगुन स्वरुप अति तेजोमय है।
प्रभु  के सगुण स्वरुप को साक्षात्कार करने की शक्ति मनुष्य में नहीं है।
गीता में अर्जुन भी सगुण -स्वरूप (विराट-स्व-रूप) देखकर भय से बोले थे -
आपका यह रूप देखकर मेरा  मन भय से बहुत व्याकुल हो रहा है।

जब कि-नाम-ब्रह्म का दर्शन और अनुभव तो सभी कर सकते है। कीर्तनमें ताली बजाने  से नाद-ब्रह्म होता है। नादब्रह्म और नामब्रह्म एक होने से परब्रह्म का प्राकट्य होता है।
भगवान को प्रसन्न करने के लिए दान,तप,यज्ञ,शौच,व्रत आदि ही पर्याप्त नहीं है।
वे तो केवल निष्काम भक्ति से ही प्रसन्न होते है। अन्य सब तो विडम्ब्नामात्र है।अतः भक्ति करो।

प्रह्लाद सभी बालको से कीर्तन कराते है।
"हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे। "
सभी बालक तालियाँ बजाते हुए कीर्तन करने लगे। प्रह्लाद तन्मय हो गए और राधाकृष्ण का दर्शन करके थै थै नाचने लगे। सभी बालक भी प्रभु-भजन में मग्न होकर नाचने लगे।

इतने में शण्डामर्क आए। उन्होंने सोचा कि अगर हिरण्यकशिपु को पता लगेगा तो अनर्थ हो जायेगा।
उन्होंने प्रह्लाद को कहा -तुम ये क्या कर रहे हो? ये भजन बंद करो।
प्रह्लाद का मन श्रीकृष्ण में होने से सुनाई नहीं दिया। शण्डामर्क ने जाकर उसका हाथ पकड़ा।
प्रह्लाद को स्पर्श करने से वे भी नाचने लगे।

उसी दिन हिरण्यकशिपु ने सोचा कि- गुरूजी बच्चों को कैसे पढ़ाते है ? वह मुझे देखना चाहिए।
उसने वहां एक सेवक को भेजा। सेवक वहाँ  का दृश्य देखकर सोच में पड गया।
गुरु और चेला दोनों नाच रहे थे।उसकी आवाज़  भी किसी ने नहीं सुनी।
उसने पहलाद का हाथ पकड़ना चाहा। हाथ के स्पर्श से वह भी नाचने लगा।

सेवक का लौटने में देर हुई सो राजा ने दूसरे सेवक को भेजा। उसकी हालत भी पहले सेवक जैसी ही हुई।
उसके बाद जितने सेवक आये उन सबकी हालत वही  हुई और सब नाचने लगे।

हिरण्यकशिपु को आश्चर्य हुआ कि  जो जाता है वह वापस नहीं आता। यह क्या हो रहा है?
वह स्वयं वहाँ आए और देखा तो गुरू,चेला और सभी सेवक नाच रहे थे।
वह खूब गुस्से में बोले -यह सब क्या हो रहा है? उसने एक -एक बच्चे का हाथ पकड़कर बैठा दिया।
राजा के स्पर्श से उन्हें  कुछ भी नहीं हुआ क्योंकि वह तो बिजली के बिगड़े हुए बल्ब जैसा था।
बिजली का गोला यदि चालू हालत में हो,तभी बिजली का प्रवाह असर कर पाता है,अन्यथा नहीं।

भजन-कीर्तन रुक गया। गुरूजी ने राजा को सारी बात सुनाई। राजा क्रोधित होकर प्रह्लाद को कहने लगे -अभी भी तू मेरे शत्रु विष्णु का कीर्तन कर रहा है। जगत में मेरे सिवाय कोई ईश्वर नहीं है। आज में तुझे मार डालूँगा।

वे प्रह्लाद को उठाकर दरबार में लाए।
राजा ने प्रह्लाद को धरती पर पटका तो धरती  माता ने उसे अपनी गोद में उठा लिया।
प्रह्लादने  पिता को प्रणाम किया। तो हिरण्यकशिपु ने कहा कि -
तू मुझे प्रणाम करता है किन्तु कहना नहीं मानता है। बता,तेरा रक्षक विष्णु कहाँ  है?


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