पिताजी,शायद आप यह मानते है कि आप वीर है,किन्तु वीर तो वही है,
जिसने अपने आंतरिक शत्रुओं को पराजित किया है।
आप मानते है कि आपने जगत को जीता है,किन्तु जगविजेता तो वह है,जिसने अपने मन को जीता है। कामक्रोधादि छः चोर आपके मन में बसे हुए है,जो आपके विवेकधन को लूट रहे है। क्रोध न करे।
आपके मुख पर आज मृत्यु की छाया दीख रही है,अतः राग-द्वेष का त्याग करके नारायण की आराधना करे।
मेरे नारायण का भजन कीजिये।
हिरण्यकशिपु अब अति क्रोधित हुए और चिल्लाने लगे -
मेरा पुत्र होकर मुझे ही उपदेश दे रहा है? कहाँ है तेरा रक्षक विष्णु?
प्रह्लाद बोले-मेरे प्रभु तो सर्वव्यापक है। वे मुझमे है और आप में भी है। आप में है तभी तो आप बोल पाते हो।
विष्णु सर्व में है ,सर्वत्र है।
हिरण्यकशिपु बोले-अगर तेरे विष्णु सर्वत्र है तो इस स्तम्भ में क्यों नहीं दिखाई देते। क्या तेरे भगवान स्तम्भ में है?
प्रह्लाद बोले- हाँ -मेरे प्रभु इस में भी है। आपकी आँखों में काम है,अतः वे दिखाई नहीं देते।
हिरण्यकशिपु -मै इस स्तम्भ को तोड़ कर विष्णु की हत्या करूँगा। वे दौड़कर गदा लेने गए।
इधर प्रह्लाद सोचने लगे कि -मैने कह तो दिया-कि स्तम्भ में भगवान है
किन्तु क्या इसमें उनका वास हो सकता है ?
उन्होंने स्तम्भ पर कान लगाया तो अंदर से “घुरू-घुरू”की ध्वनि आई -तो प्रह्लाद को विश्वास हो गया कि
भगवान स्तम्भ में भी है। उन्होंने स्तम्भ को आलिंगन किया। अंदर नृसिंह स्वामी विराजमान थे।
उन्होंने प्रह्लाद को विश्वास दिया कि वे उसकी रक्षा करेंगे।
इधर हिरण्यकशिपु गदा लेकर आये और चिल्लाने लगे -बता तेरा विष्णु कहाँ है?
प्रह्लाद-वे इसी स्तम्भ में विराजमान है।
हिरण्यकशिपु ने क्रोधावश में उस स्तम्भ पर गदा को प्रहार किया।
अंदर से 'घुरू घुरू' बोलते हुए नृसिंह स्वामी प्रकट हुए।
उन्होंने हाथ बढ़ाकर प्रह्लाद को गोद में बिठा लिया और हिरण्यकशिपु से कहा-
कि यह न रात है,और न दिन,न धरती है न आकाश। घर में भी नहीं,बहार भी नहीं,किन्तु देहलीज पर तुझे मारूंगा। अस्त्र या शस्त्र से नहीं,नाख़ून से मारूंगा और भगवान ने अपने नाख़ून से उसे चिर डाला।
नृसिहं स्वामी के चरित्र का रहस्य ऐसा है -
-दुःख का कारण देहाभिमान है। यह अभिमान सबको रुलाता है। यह अभिमान जल्दी नहीं मरता।
-जैसे,घर में अगर एक ही दिया हो तो लोग उसे दहलीज में रखते है
जिससे घर के अंदर और बहार दोनों जगह उजाला रहे।
-वैसे,शरीर एक घर है। शरीर-घर में रहने वाली जीभ दहलीज है। प्रभु का नाम वह दिया जैसा है।
प्रभु का नाम जीभ पर रखना है। अभिमान को मारना है
और अगर अंदर-बहार सभी जगह उजाला करना है तो जीभ पर हरि का नाम रखो।