Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-199



पंजाब के मुल्तान शहर में हिरण्यकशिपु के राजधानी थी।
अपने भक्त प्रह्लाद के वचनों को कृतार्थ करने और अपनी सर्वव्यापकता सिध्ध करने के हेतु
भगवान नृसिहं के स्वरुप में बैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन काष्टस्तम्भ में से प्रकट हुए थे।
इसी कारण पंजाब के लोग  अपने नाम के साथ सिंह शब्द का प्रयोग करते है। वे सिंह के समान बलवान है।
“नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः” शक्तिहीन पुरुष आत्मा को प्राप्त नहीं कर सकता।
धीरे-धीरे संयम और शक्ति बढ़ाओ तो भक्ति बढ़ेगी।

हिरण्यकशिपु का संहार करने पर भी नृसिंह स्वामी का क्रोध कम नहीं होता था ।
उनका क्रोधित स्वरुप देखकर तीनो लोक भयभीत हो गए। ब्रह्माजी ने भी प्रयत्न किया।
लक्ष्मीजो को भी बुलाया।  सब ने प्रयत्न किया,किंतु नृसिंह स्वामी का क्रोध काम होता था ।
अंत में ब्रह्माजी ने प्रह्लाद को भेजा। प्रह्लादजी ने प्रभु के पास जाकर साष्टांग प्रणाम किया।
उन्हें देखकर प्रभु के ह्रदय में आनंद का सागर उमड़ आया
प्रह्लाद को गोद में बिठाकर वात्सल्य भाव से उसका शरीर चाटने लगे।

प्रह्लाद की भाँति भगवान की गोद में जो विराजमान होता है,उसका काल कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता। हिरण्यकशिपु जैसों के लिए भगवान भयंकर और क्रूर है,किन्तु प्रह्लादके लिए तो वे कमल के समान कोमल है। शास्त्रोंमें -भगवानको  दुष्ट के लिए भयरूप और भयकारक के साथ-साथ भयनाशी भी बताया गया है।

प्रह्लाद सत्वगुण है। हिरण्यकशिपु तमोगुण है। सत्वगुण और तमोगुण का यह युध्ध है।
इसमें भगवान प्रह्लाद का -सत्वगुण का पक्ष लेते है। शुध्ध सत्वगुण के आगे तमोगुण का नाश होता है।
प्रह्लाद के वचन की सार्थकता और अपनी सर्वव्यापकताकी सिध्धि के हेतु से नृसिंह स्वामी स्तम्भ में प्रकट हुए थे।

सभी जानते है ईश्वर सर्वव्यापक है -- पर उसका अनुभव बहुत काम लोग करते है।
यदि ईश्वर की सर्वव्यापकता का अनुभव सभी करे तो घर ही वैंकुंठ बन जाये। घर में कोई झगड़ा न हो पाए।
उस घर से पाप का नाम मिट जाए।
सर्वव्यापक का अर्थ है,सभी में बसे हुए,सभी में समाये हुए।
जैसे,दूध में मक्खन दिखता नहीं है,फिर भी उसके अणुपरमाणु में वह समाया हुआ है।
इसी प्रकार ईश्वर भी जगत के सभी स्थूल-सूक्ष्म पदार्थों में बसे हुए है।
उनका अभाव  कही भी नहीं है। अतः वे सर्वव्यापी है।

जो ईश्वर को सर्वत्र में देखता है,समझता है ,उसके जीवन में दिव्यता आती है। सब में ईश्वर को निहारो।
प्रथम मातृदेवो भव फिर पितृदेवो भव, और अंत में परस्पर देवो भव। ईश्वर के पारस्परिक दर्शन करो।
लोग एक-दूसरे से मिलने पर राम-राम कहते है। इसका अर्थ यही है कि मुझमे और तुममें राम निहित है।

प्रत्येक जड़-चेतन पदार्थ में ईश्वर के दर्शन करोगे,तो पाप तुम्हारे पास नहीं आएगा।
सब में ईश्वर का अनुभव करने वाले का  मन में विकार-वासना से रहित हो जाता है।
ईश्वर सर्वव्यापी और सर्वत्र है। भगवान को केवल चन्दन,पुष्प अादि का  अर्पण करना भक्ति नहीं है।
सभी में भगवतभाव रखना ही सच्ची भक्ति है।


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