Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-201



प्रह्लाद ऐसे निष्ठावान थे कि वे सभी में ईश्वर निहारते थे।
अनेक में एक (प्रभु) का दर्शन करना भक्ति है। जो सभी में उसी तत्व को देखे,वही ज्ञानी है।
ज्ञानी एक में अनेक का लय करता है। तुम भी उसी तरह एक में अनेक का लय करो।
यह वेदांत की प्रक्रिया है। "अनेक में एक को देखो।"  (अद्वैत या ज्ञान मार्ग))
जब कि -वैष्णव (भक्त)  एक में अनेक को देखते है। (द्वैत या भक्ति मार्ग)
शाब्दिक भिन्नता हो सकती है किन्तु ज्ञानमार्ग और भक्तिमार्ग में खास कोई भिन्नता नहीं है।

अनेक में एक को देखना ज्ञान  है। एक में अनेक को देखना भक्ति  है।
ज्ञानी बाह्य रूप रंग की सुंदरता के कारणभूत ईश्वर का ही चिंतन करते है। गाय काली हो या सफ़ेद पर दूध तो सफ़ेद ही देती है। मनुष्य बुद्धिमान हो या मूर्ख  पर सभी में रहा चेतनतत्व एक ही  है। जगत में कोई मूर्ख नहीं है। सब ईश्वर के अंश है। जो दुसरो को मूर्ख माने वह खुद ही मूर्ख है।

हमारे देश में पशु की पूजा की जाती है। भैरवनाथ का वाहन कुत्ता है और शीतला माता का वाहन है गधा।
ईश्वर चैतन्य रूप से सभी में है -
ऐसा अनुभव करने की जिसे आदत पड़े -उसकी प्रत्येक क्रिया भक्तिमय और ज्ञानमय बनेगी।

बुद्धि का कभी मत विश्वास मत करो। किसी संत को गुरु बनाकर उसके  आधीन रहो।
जो तुम्हे पाप करने से रोके ऐसे किसी संत के आधीन रहो। सद्गुरु के बिना कल्याण नहीं हो सकता।
यदि वे संत कृपा  करेंगे तो तुम्हारी मानसी वासना और विकारों का नाश होगा।
मन-बुध्धि की वासना संत सेवा के बिना दूर नहीं हो सकती। बुध्धि को किसी संत की सेवा में लगा दो।
जब तक बुध्धि परमात्मा से विवाहित न हो जाये,तब तक उसे संत के आधीन रखो।
सद्गुरु की कृपा के बिना हर किसी में ईश्वर के दर्शन नहीं हो सकेंगे।

गुरु बनने से शिष्य के पापों का उत्तरदायित्व गुरु के नाम पर आ जाता है।
शिष्य के पापों का न्याय करने के समय गुरु को भी वह बुलाया जाता है  और उनसे पूछा जाता है कि
उन्होंने शिष्यों को पाप करने से क्यों नहीं रोका ,उसे सन्मार्ग पर क्यों नहीं ले जाया गया।
तब शिष्य के साथ-साथ गुरु को भी दंडित होना पड़ता है।

एक बार महाराष्ट्र में सभी सन्त इक्कठ्ठे हुए।
भक्त मंडल की ज्ञान और भक्ति की परीक्षा करने के लिए मुक्ताबाई ने गोरा कुम्हार से कहा।
वहां नामदेव भी थे,नामदेव को अभिमान था कि वह भगवान को प्यारे है और वे उनसे बाते करते है।
गोरा कुम्हार सभी के सर पर एक-एक चपत लगाकर परीक्षा करने लगे।
उसने नामदेव के सिर पर भी लगाई। ऊपर से तो नामदेव ने कुछ भी नहीं कहा किन्तु उनका मुंह फूल गया।
उन्होंने अभिमानवश सोचा कि कही मिटटी के बर्तन की भाँति मेरी परीक्षा हो सकती है?
अन्य भक्तो के चेहरे के भाव अपरिवर्तनरहित ही रहे।
गोरा कुम्हार ने अपना निर्णय सुनाया-सभी के मस्तक पक्के है,किन्तु नामदेव का कच्चा है।
यह सुनके नामदेव ने गुस्से से कहा -तुम्हारा सिर ही कच्चा है। तुम्हे ही शिक्षा की आवश्यकता है।

नामदेव ने विठ्ठलनाथजी के पास जाकर सारी घटना सुनाई।
विठ्ठलनाथजी ने कहा- नामदेव,यदि मुक्ताबाई और गोरा कुम्हार कहते है कि तेरा सिर कच्चा है, तो अवश्य ही कच्चा होगा।तुझे अभी सर्वव्यापक ब्रह्म का अनुभव ही नहीं हुआ है। इसका कारण यह है कि तूने अब तक किसी सद्गुरु का आश्रय नहीं लिया है। तू मंगलवेढा में रहने वाले मेरे भक्त विसोबा खेचर के पास जा,वह तुझे ज्ञान देगा।


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