वहाँ देखा तो विसोबा खेचर शिवलिंग पर पाँव पसार कर सोए हुए थे।
नामदेव यह दृश्य देखकर सोचने लगा कि जो व्यक्ति भगवान का अपमान कर रहा है वह मुझे क्या शिक्षा देगा?
नामदेव ने विसोबा से कहा कि -भगवान के शिवलिंग पर से पाँव हटा लो ।
विसोबा खेचर ने नामदेव से कहा -
तू मेरे पाँव उठकर ऐसे स्थान पर या ऐसी दिशा में रख दे कि जहॉ शंकर का अस्तित्व न हो।
नामदेव विसोबा के पाँव इधर-उधर करने लगे। किन्तु वे जहाँ भी उनके पाँव रखते थे वही पर शिवलिंग प्रकट हो जाता था और इस प्रकार सारा मंदिर शिवलिंग से भर गया।
नामदेव यह देखकर आश्चर्य में डूब गए।
विसोबा ने उनसे कहा -तू वास्तव में अभी कच्चा है। विश्व में भगवान सूक्ष्म रूप से हर जगह व्याप्त है।
तू भी जड़-चेतन सभी में ईश्वर को निहार।
इसप्रकार जब भक्ति और ज्ञान का साथ मिल गया तो नामदेव सभी में और हर जगह ईश्वर के दर्शन करने लगे।
वापस लौटते हुए रास्ते में किसी वृक्ष के नीचे बैठकर वे भोजन की तैयारी कर रहे थे कि कुत्ता रोटी लेकर भाग गया।पर आज नामदेव ने उस कुत्ते में भी भगवान के दर्शन किये।
अतः वे घी लेकर उस कुत्ते के पीछे भागे -और कुत्ते को कहते है-
रुक जा,विठ्ठल,वह रोटी सुखी है। मै तुझे उसपर घी लगाकर दू। बादमे तू उसे खा।
व्यापक ब्रह्म का अनुभव न हो तब तक उपासना पूरी नहीं होती।
सगुण की सेवा करनी है और निर्गुण का अनुभव करना है।
बुध्धि जब तक सूक्ष्म नहीं हो पाती,उससे ईश्वर का चिंतन नहीं हो सकता।
परमात्मा प्रेम के कारण ही साकार-रूप धारण करते है। परमात्मा सगुण भी है और निर्गुण भी।
निर्गुण और सगुण तत्वतः एक ही है। निर्गुण ही सगुण बनता है। प्रभु स्थूल भी है और सूक्ष्म भी।
वे कोमल भी है और कठोर भी।
वेदांती मानते है कि यह सब धर्म माया के कारण आभासित होते है।
वैषणवाचार्य मानते है कि विरुध्धधर्माश्रयी परमात्मा है।
जो नृसिंह स्वामी हिरण्यकशिपु के प्रति कठोर हो गए थे,वे प्रह्लाद के कारण कोमल हो गए।
ज्ञानी पुरुष सभी में भगवददृष्टि रखते है। दृश्य पदार्थ (जगत) में से दृष्टि को हटकर दृष्टा (ईशवर)में स्थिर करो।
दृश्य (जगत) में से दृष्टि को हटा लो और सर्वदृष्टा,सभी के साक्षी परमात्मा के स्वरुप में दृष्टि स्थिर करो।