Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-203



ज्ञानी कहते है -जो कुछ दीखता है (जगत-या-दृश्य) उसके साथ प्रेम मत कर।
दृश्य (जगत) वस्तु  ईश्वर नहीं है। तू दृष्टा (ईश्वर) के साथ प्रेम कर। ईश्वर दृश्य नहीं,दृष्टा है।
वेदान्त  कहता है - ईश्वर दृश्य नहीं,अपितु सबके दृष्टा है। ईश्वर में दृश्यत्व का आरोप माया के कारण होता है।
जो व्यक्ति सर्वदृष्टा (ईश्वर)में दृष्टि स्थिर करे,उसे प्रभु मिलते है।

वैष्णव (भक्त)  मानते है कि सभी पदार्थो में ईश्वर है।
ऐसा मानकर व्यव्हार करने से भक्ति मार्ग में सफलता मिलेगी।
ईश्वर के किसी भी स्वरुप के प्रति आसक्ति रखे बिना भक्ति नहीं हो पायेगी।

दोनों मार्ग(भक्तिमार्ग और ज्ञानमार्ग)सच्चे है। आगे जाकर दोनों मिल जाते है। शुरू में एक मार्ग निश्चित करो। शुरुआतमे -कोई भी एक साधन करना अत्यंत जरुरी है।

अब प्रह्लाद -स्तुति प्रकरण आता है। परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए आवश्यक है ह्रदय का शुध्ध प्रेम।

प्रह्लाद स्तुति करते है -हे  प्रभु,बड़े-बड़े सिध्ध महात्मा कई वर्ष तपश्चर्या करने पर भी आपका साक्षात्कार नहीं पा सकते है,किन्तु राक्षसकुल में जन्म लेने पर भी आज आपने दर्शन देने की मुझ पर कृपा की।

परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए संपत्ति,शिक्षा या उच्च कुल में  जन्म लेने की आवश्यकता नहीं है।
अधिक कमाना और उसको प्रभु सेवा में व्यय करना ठीक है,
किन्तु एक आसन पर बैठकर प्रभु का ध्यान करना उससे भी अधिक अच्छा है।

ज्ञान का आधिक्य (ज्यादा-पन) तर्क-वितर्क का जन्मदाता है।
अतः ज्ञानी भगवान की स्मरण-सेवा ठीक तरह से नहीं कर पाता।
बहुत ज्ञानी आरम्भ में कुतर्क करता है ,जबकि आरम्भ में श्रध्धा आवश्यक है।

पढ़े लिखे शिक्षित लोग (कहने के ज्ञानी) अधिक कुतर्क करते है।
वे कहते है कि पहले चमत्कार दिखाइए,बाद में हम आपके ठाकुरजी को नमस्कार करेंगे।
जादूगर को पैसे की जरुरत है इसलिए  चमत्कार बताता है। पर ठाकुरजी तो लक्ष्मी के पति है !
उसे क्या कमी है? वो किसको और क्यों चमत्कार दिखायेगे?

पहले चमत्कार फिर नमस्कार,यह नियम इस जगत के व्यवहार का तो हो सकता है,
पर भगवान के व्यवहार का नहीं।
परमेश्वर का व्यवहार है प्रथम नमस्कार और बाद में चमत्कार। बिना चमत्कार के नमस्कार मानवता है।
चमत्कार के बाद नमस्काार अभिमान है।
जिसको जरुरत है वे खूब श्रध्धा  से सेवा स्मरण करे और फिर देखे कि जीवन में कैसा परिवर्तन होता है।
यह अनुभव सबसे बड़ा चमत्कार है।

जरा सोचो -यह जगत भी एक चमत्कार है।
-फूल में सुगंध कहाँ से आती है?
-एक छोटे बीज में से बड़ा वृक्ष कैसे  बनता है?
-बच्चे के लिए माँ के स्तन में दूध कौन तैयार करता है?
-दरिया के किनारे खारे  पानी के पास नारियल के पेड़ पर नारियल में मीठा पानी कहाँ  से आता है?

यह जगत परमात्मा के चमत्कारों से भरा है। फिर भी शिक्षित लोग चमत्कार के आशा लगाए  बैठे है। अशिक्षित लोग बिना चमत्कार भी नमस्कार करते है। अशिक्षित श्रध्धा रखते है। शिक्षित लोग श्रध्धा  में नहीं मानते।

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