Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-206



सेवा और पूजा में भेद है। जहॉ प्रेम का प्राधान्य है,वह सेवा है,और जहॉ वेदमंत्र की प्रधानता है,वह पूजा है।
सद्भावपूर्वक सेवा करोगे तो वह सेवा सफल होगी।
सेवा करते समय रोंगटे खड़े हो जाये,आँखों में अश्रुधारा बहने लगे,तो समझो कि वह सच्ची सेवा है।
सेवा केवल क्रियात्मक नहीं,भावात्मक होनी चाहिए। सेवा करते हुए आनंद मिले,वही सेवा है।
जो भी करो प्रेम से करो। भगवान के लिए भोजन बनाओ। भगवान को अर्पित करने के बाद भोजन करो।
साथ में प्रार्थना करो की हे नाथ,आप तो विश्वम्भर है। सभी के स्वामी है। यह पदार्थ आपको मनसे अर्पण करता हूँ।

जो ईश्वर का है,वही उन्हें अर्पित करना है। परमात्मा तो परिपूर्ण है। उन्हें कोई अपेक्षा नहीं है। वे तो मात्र भावना के भूखे है। उन्हें तुम भाव से अर्पित करोगे,तो वे उसका कई गुना अधिक बनाकर तुम्हे वापस देंगे।

दक्षिण में एक कथा प्रचलित है।
किसी एक गाँव में एक गृहस्थ के घर में विवाह का अवसर था। ब्राह्मण ने देखा कि  गणेश की मूर्ति नहीं है।
अब क्या किया जाये? वह ज्ञानी था। उसने सोचा कि ईश्वर की प्रतिष्ठा प्रेमपूर्वक कही भी की जा सकती है।
सुपारी में भी भगवान है और गुड में भी।  अतः उस ब्राह्मण ने नैवेध में रखे हुए गुड में से ही गणेश बना लिए।
यजमान से पूजा कराई। धुप-दीप आदि हो गया। अब नैवेध का समय आया। नैवेध (गुड) में से तो गणेश बनाये थे। अब क्या करे? तो उस महाराज ने गुड की मूर्ति में से थोड़ा गुड निकालकर नैवैध बना लिया।

गणेश भी गुड के और नैवैध भी गुड का ही। ऐसी पूजा से भी गणेश प्रसन्न हुए।
उस यजमान का कार्य निर्विघ्न पूरा हुआ।  कार्य की भावना शुध्ध थी।
महत्व  वस्तु का नहीं ,भावना का है। सद्भावपूर्वक सेवा करोगे तो वह सेवा सफल होगी।

भक्तिमार्ग में भाव के बिना सिध्धि प्राप्त नहीं होगी। ज्ञान-मार्ग में त्याग और वैराग्य आवश्यक है।

पिता बालक को रुपया देता है। और फिर अगर वापस माँगा तो कई बालक नहीं देते तो पिता को दुःख होता है।
“मैंने जो रुपया दिया वही  मुझे वापस नहीं देता” पर अगर बालक वापस देता है तो उसे आनन्द होता है।

ईश्वर जीवमात्र के पिता है। उन्होंने हमे जो कुछ दिया है,वही हमे उन्हें देना है।
प्रतिज्ञा करो कि ठाकुरजी की सेवा  किये बिना कुछ भी नहीं खाओगे।

प्रभु की सेवा किये बिना खाना पाप है। जिस घर में ठाकुरजी की सेवा नहीं है वह घर स्मशान जैसा है। ठाकुरजी की सेवा खुद करो। जिस घर में बालकृष्ण की सेवा होती है वहाँ लक्ष्मीजी आती है। जिस घर में भगवान के लिए रसोई होती है वहाँ अन्नपूर्णा रहती है। उस घर में खाने की कोई कमी नहीं होती।


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