Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-207



कई बार ऐसा भी होता कि घर के सारे लोग भोजन के लिए बाहर जाते है,तो भगवान को मात्र दूध ही देते है और भगवानको कहते है- "पी लीजिये"। यह बात ठीक नहीं है।
चाहे घर  में कोई भी भोजन करने वाला न हो,फिर भी भगवान के लिए कुछ बनाना चाहिए।

कथा सुनकर यदि कोई शुभ संकल्प नहीं किया,तो श्रोता का सुनना और वक्ताका कहना दोनों निरर्थक है।
कथा सुनकर उसे ह्रदय में रखो।

किसी भी स्वरुप की मूर्ति की स्थापना करके उसकी प्रेम  और भावपूर्वक सेवा करो। सेवा करते समय मन में ऐसा भाव रहना चाहिए कि यह साक्षात परमात्मा ही है। सेवा के आरम्भ में ध्यान करो। संपत्ति के अनुसार खर्च करो। ध्यान से भावना करो कि ईश्वर वैकुंठ से इधर आ रहे है  और मेरे घर में सेव्य स्वरुप में प्रविष्ठ हो रहे है। सेवा करते समय किसी से भी बात मत करो।

न तो कोई परमात्मा से श्रेष्ठ है और न कोई परमात्मा के समान है।
सेव्य में मन लगाये रखना ही सेवा है। तुंम अपने शरीर से जैसे प्रेम करते हो वैसा ही प्रभु से करो। परमात्मा के अनंत उपकार है। सदा यही सोचो कि प्रभु ने मेरी रक्षा कई बार की है। मे भगवान का सेवक हूँ। कृष्ण सेवा में जब तक ह्रदय पिघलता नहीं है,तब तक सेवा सफल नहीं होती। दास्यभाव के बिना सेवा नहीं फलती। सेवा,स्नेह और समर्पण भाव से करो। जब तक मूर्ति के प्रति सद्भाव न जागे,तब तक प्रत्येक पदार्थ के प्रति ईश्वरभाव नहीं जागेगा। सेवा करते समय लक्ष्य में वही  रहे कि यह तो प्रत्यक्ष ईश्वर ही है।

प्रभु सेवा में भावना अटल कैसी होनी चाहिए,इस विषय में नामदेव महाराज के जीवन की एक कथा है।

नामदेव जब तीन साल के थे,तब की यह बात है। उनके पिताजी को एक बार कही बाहर जाना पड़ा-
तो सेवा-पूजा का काम वे नामदेव को सौप कर बोले-
पिता ने कहा-बेटा ,विठ्ठलनाथ हमारे घर के स्वामी है। उनकी सेवा किये बिना भोजन करना पाप है।
नामदेव ने पूछा-ठाकुरजी की सेवा कैसे करनी वो मुझे बताओ।
पिताजी बोले -बेटे,प्रातःकाल में जल्दी जागकर स्नानादि से पवित्र होने के बाद -
भगवान की प्रार्थना करना। प्रार्थना करके उन्हें जगाना।
(उत्तिष्ठ मम गोविन्द उत्तिष्ठ गरुड़ध्वज। उत्तिष्ठ कमलाकति त्रैलोक्य मंगल कुरु।)
उन्हें उठाने से पहले भोग-सामग्री तैयार रखना।
वैष्णव के ह्रदय में परम-भाव जागने पर ही ठाकुरजी को भूख लगती है। भगवान के चरण धीरे-धीरे धोना।
कही उन्हें तकलीफ न होने पाए। फिर उनका शृंगार करना उनसे पूछना कि -
आज कौन-सा पीताम्बर पहनोगे?

श्रृंगारकर्ता  भगवान के साथ ही हो जाता है। योगी को जो आनंद समाधि में मिलता है वही आनंद भक्त को ठाकुरजी का श्रृंगार करते हुए प्राप्त होता है। खुली आँखों से ही समाधि-सा आनंद मिलता है।
योगी,प्राणायाम,प्रत्याहार आदि करते है,फिर भी उनका मन कई बार कुछ उल्टा ही कर बैठता है।

श्रृंगार के पश्चात दूध और भोग अर्पण करना। विठ्ठलजी बड़े शर्मीले है. बार-बार विनती करके मनाने पर वे भोजन करते है। उनसे प्रार्थना करके कहना कि भले ही उन्हें आवश्यकता ने हो,फिर भी वे भोग अवश्य ग्रहण करे। जब कई बार इस  तरह प्रार्थना करोगे,तभी वे दूध स्वीकार  करेंगे।

स्तुति के पश्चात भगवान को वंदन करना। स्तुति में कोई क्षति रह गई हो,तो प्रणाम करने से सब ठीक हो जाता है। सेवा की समाप्ति में बालकृष्ण को साष्टांग प्रणाम करना।

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