उनके मन में ऐसा ठस गया कि - मूर्ति में भी भगवान दिखाई देंगे।
बालक को बड़ा होने के बाद समजाने लगोगे तो वह दलील करने लगेगा।
अतः बाल्यावस्था में बालकको भक्ति के संस्कार दृढ करने चाहिए।
नामदेव के मन में यह बात बैठ गई थी कि विठ्ठलनाथ दूध अवश्य पियेंगे और भोजन भी करेंगे।
नामदेव बाल्यावस्था से ही भक्त थे। जिस दिन पिताजी बाहर गए,सेवा की धुनमें मस्त नामदेव को नींद नहीं आई। वे प्रातः चार बजे उठकर सेवा में लीन हो गए।
उसने प्रभु को प्रेम से जगाया।
नामदेव ने ठाकुरजी के चरणों को धोकर उनका सुन्दर श्रृंगार किया। विठ्ठलनाथ प्रसन्न दीखने लगे।
वे गरीब थे इसलिए तुलसी की माला,जो ठाकुरजी को भी प्रिय है,पहना दी।
अल्प देने पर भी अधिक मान ले,वह ईश्वर है और अधिक को भी अल्प माने वही जीव है।
नामदेव ने ठाकुरजी को गोपीचन्दन लगाया। श्रृंगार के बाद ठाकुरजी को भूख लगती है।
हमारे ह्रदय में यदि प्रेम है,तो भगवान की मूर्ति में चेतना आती है।
प्रेम जड़ को भी चेतन और प्रेम का अभाव चेतन को भी जड़ बना सकता है।
नामदेव दूध लाकर प्रभु को अर्पित करते हुए कहने लगे-विठ्ठलनाथ,आप तो जगत के पालनकर्ता है,अतः मै आपको क्या खिला सकता हूँ?आपका जो है वही आपको दे रहा हूँ।
नामदेव बार-बार प्रभु को मनाने लगे,विनती करने लगे,पर नामदेव का प्रेम देखकर विठ्ठलनाथ दूध पिने की अपेक्षा बालक को निहारने लगे।
विठ्ठल को दूध न पीते हुए देखकर नामदेव बोले-मै बालक हूँ। मैने आज तक आपकी सेवा नहीं की है,अतः आप मुझसे नाराज़ तो नहीं है?आप दूध क्यों नहीं पीते। आपको भूख लगी होगी। दूध पी लीजिये।
कही दूध में शक्कर तो कम नहीं है?
यह सोचकर उन्होंने शक्कर लेकर थोड़ी दूध में डाली। फिर भी विठ्ठलनाथ दूध नहीं पि रहे थे.
नामदेव फिर बोले-विठ्ठलनाथ,यदि आप दूधपान नहीं करेंगे,
तो मै भी दूध पीना छोड़ दूँगा और आपके चरणों में अपना सिर फोड़ दूँगा।
बालक व्याकुल था कि विठ्ठलनाथजी दूध नहीं पियेंगे,तो पिताजी क्रोधित हो जायेंगे। बालक अपना सिर फोड़ने ही जा रहा था कि परमात्मा ने दूध का बर्तन उठा लिया। आज जड़मूर्ति भी चेतनमय हो गई।
नामदेव के प्रेम से विठ्ठलनाथ प्रसन्न हुए। उन्हें दूध पीते देखकर नामदेव प्रसन्न हुए।
बालक को तो यह भी आशा थी कि विठ्ठलनाथ का कुछ न कुछ प्रसाद तो मिलेगा ही,
किन्तु आज विठ्ठलनाथ सारा दूध पी जाने की इच्छा कर रहे थे।
यह देखकर नामदेव बोले-आपको आज क्या हो गया है?क्या मुझे थोड़ा सा भी प्रसाद नहीं देंगे?
यह सुनकर विठ्ठलनाथ ने नामदेव को उठाकर अपनी गोद में लिया और फिर दोनों ने एक दूसरे को दूध पिलाया।