Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-210



विषयो के उपभोग के समय मनुष्य को संसार को बनाने वाले ईश्वर को नहीं भूलना चाहिए।
संसार को भोगदृष्टि से नहीं,किन्तु भगवद्दृष्टि से मनुष्य यदि देखे तो वह सुखी होगा।
तू स्वयं को ही सुधर। तू खुद नहीं सुधर शकता -तो-सारे संसार को तो कैसे सुधार सकेगा?

एक उदहारण है -
एक बार अकबर की पुत्री के पाँव में काँटा चुभ गया,
तो अकबर ने बीरबल को बुलाकर आज्ञा दी कि मेरे राज्य की सारी भूमि को चमड़े से आच्छादित करा दो
कि जिससे भविष्य में फिर कभी शहजादी को कांटा न चुभे।
बीरबल सिर खुजालने लगा कि इतना बड़ा चमड़ा कहाँ से लाया जाये जो सारे राज्य को आच्छादित कर दे।
बीरबल ने सोचा कि सारी भूमि को चमड़े से ढकने के बजाय शहजादी के पाँव ही को ही,
क्यों न चमड़े से ढक दिया जाए? और बीरबल ने जुते बनवाकर शहजादी को पहना दिए।

जगत में कांटे है और रहेंगे,पर जिसके पाँव में जुते है,उसे काँटे नहीं चुभेंगे। विवेकपूर्वक मर्यादा में रहकर मनुष्य सुख का उपभोग करे तो सुखी हो सकता है। परन्तु मनुष्य उसका विवेकपूर्वक लाभ नहीं लेता और दुःखी होता है।

एक गाँव में पानी की बहुत तकलीफ थी। उस गाँव के शेठ ने लाख रुपये खर्च करके कुआँ  बनाया।
लोग जल का उपयोग करते हुए शेठ को आशीर्वाद देने लगे। एक दिन इत्तफाक से खेलते हुए कोई लड़का कुएँ में गिरने से डूबकर मर गया। उसके पिता शेठ से से झगड़ा करने लगा और गाली देकर कहने लगा कि -
अगर या कुआँ बनाया न होता तो मेरा बेटा  न मरता।
अब आप ही सोचिए। क्या सेठ ने किसी व्यक्ति के पुत्र को मारने के लिए कुआँ बनवाया था?
उसने तो सभी के लाभ के लिए बनाया था।
यह संसार भी एक कुऑ  है किन्तु किसी को डूबा देने के लिए तो उसका निर्माण नहीं हुआ है।

प्रह्लाद कहने लगे-प्रभु आपको अपराधी कौन कह सकता है किन्तु इन विषयो को सुन्दर बनाकर आपने ठीक नहीं किया। अतः अब आप हमे यह समझाए कि संसार के विषयों में मन फंसने न पाये,इसके लिए हम क्या करे?

नृसिंह भगवान कहने लगे -इस जगत को सुखी करने के हेतु से मैने दो अमृत बनाये है।
उनका पान करने से तुम्हारा मन विषयों की ओर आकर्षित नहीं होगा और इन्द्रिय तुम्हे सताएंगी भी नहीं।
ये दो अमृत है:(१) नामामृत और(२) कथामृत।
ये दो अमृत में कोई खर्च नहीं करना पड़ता। बिलकुल मुफ्त है। कृष्ण का नाम तो स्वर्ग के अमृत से भी श्रेष्ठ है। स्वर्ग के अमृत का पान तो देव भी करते है पर उन्हें शान्ति नहीं है।
कलियुग का मनुष्य भोगी है। अगर वह योगी होने जाए तो भी उसे सफलता नहीं मिलती। इसलिए कलयुग में नामामृत  और कथामृत श्रेष्ठ है। इसका पान करने से संसार सुखदायी और ब्रह्मरूप लगता है।

स्तुतुि के अन्तिम श्लोक में प्रह्लाद ने छ साधन बताए है जिससे परमात्मा की अनन्य भक्ति प्राप्त होती है--
प्रार्थना,सेवा-पूजा,स्तुति,वंदन,स्म्ररण और कथा-श्रवण।

यह छ साधन को विधिपूर्वक करने से जीवन सुधरता है और अनन्य भक्ति प्राप्त होती है।

नृसिंह स्वामी ने प्रह्लाद से कुछ वरदान मांगने को कहा।  
प्रह्लाद तो निष्काम भक्त थे,अतः वे कुछ भोगादि नहीं मांगते है।
नृसिंह स्वामी ने कहा-प्रह्लाद चाहे तेरी इच्छा न हो,फिर भी मुझे खुश करने के लिए कुछ माँग।
प्रह्लाद -प्रभु,मुझ पर ऐसी कृपा करे कि संसार का कोई भी सुख पाने का विचार भी मेरे मन में न आए।
किसी भी प्रकार की इन्द्रिय-सुख की भोगेषणा मेरे मन में न जागे। ऐसा वरदान दीजिये।


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