Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-211



सांसारिक सुख का उपभोग करने की इच्छा ही महादुःख है।
जिसे किसी भी सुख की इच्छा नहीं है,वही सच्चा सुखी है। सांसारिक सुख की इच्छा कभी हो न पाये,
ऐसा समझना ही सुख है। सुख की इच्छा होते ही मनुष्य की बुध्धि क्षीण होने लगती है।
इसीलिए, मन पर हमेशा भक्ति का अंकुश  रखो।
गीता में कहा गया है -सर्व काम्यकर्मो का और सर्व इच्छाओं का त्याग ही सन्यास है,ऐसा महात्मा कहते है।

नृसिंह स्वामी -प्रह्लाद को कहते है -जीव निष्काम होता हे तो उसका जीवभाव नष्ट हो जाता है और फिर वह भगवान के साथ एक हो जाता है। जीव ईश्वररूप बनता है। पुण्य भी मुक्ति में बाधक है। विवेक से पुण्य का क्षय करो। मेरे स्वरुप का निरंतर ध्यान करो,पाप लोहे की जंजीर है और पुण्य सुवर्ण की जंजीर है।
इन दोनों को नष्ट करके ही तुझे मेरे धाम में आना है।

प्रह्लाद-नाथ,ऐसी कृपा कीजिए कि  मेरे पिता की दुर्गति न हो। पिता मेरे गुरु है। उन्होंने मुझे मार डालने की कोशिश की -जिसे मुझे ज्ञात हुआ कि -भगवान के सिवाय मेरा कोई आसरा नहीं है।

नृसिंह स्वामी बोले-तेरे सत्कर्म के कारण तेरे पिता को सद्गति मिलेगी।
माता-पिता दुराचारी हो किन्तु यदि पुत्र सदाचार्री होगा तो उनका भी उध्धार होगा
किन्तु यदि माता-पिता सदाचारी हो और पुत्र दुराचारी हो तो उनका उध्धार नहीं होगा। उनकी दुर्गति होगी।

एक उदहारण है -
एक हंस-युगल आनंद से रहते थे। हंसिनी सुन्दर थी एक बार घूमते-घूमते शाम हो गई तो वे वृक्ष पर बैठे।
वहाँ कौए का घोंसला था। हंस ने उससे रात गुजारने की विनती की।
हंसिनी की सुंदरता देखकर कौए की मति भ्रष्ट हो गई।
शास्त्र में कहा है कि जो व्यक्ति अपनी आँख से पाप करता है ,उसे अगले जन्म में कौआ बनना पड़ता है।

कौए ने हंस-युगल को  अपने घोंसले में रहने दिया। दूसरे दिन जब वे जाने लगे तो कौआ हंसिनी को  रोकने लगा। हंस ने कहा कि हंसिनी मेरी है,तो कौआ उसे अपनी कहने लगा।
अंत में दोनों का न्याय मांगने के लिए न्यायाधीश के पास गए।
न्यायाधीश ने कहा  कि मे तो दोनों की बातें सुनने के बाद निर्णय करूँगा। कौआ बड़ा चालाक था।
कौआ पित्रदूत माना जाता है,अतः वह न्यायधीश को कहने लगा कि-
तुम्हारे माता-पिता कौन सी योनि में है वह मै जानता हूँ। अतः तुम मेरा काम करोगे,तो मै तुम्हारा काम करूँगा। तुम हंसिनी को मुझे दिला दो और मे तुम्हे बताऊँगा कि तुम्हारे माता-पिता कौन से योनि में है।

न्यायाधीश कौए की बातों में आ गया। उसने दूसरे दिन न्याय करते हुए कहा -हंसिनी उसी की है जो उड़ते हुए आगे निकल जाए। हंस की अपेक्षा कौआ अधिक गति से उड़ता है। कौआ उड़ता हुआ हंस के आगे निकल गया और न्यायाधीश ने हंसिनी उसके हवाले कर दी।

अब न्यायधीश ने कौए से अपने माता-पिता के बारे में पूछा।
कौए ने उसे एक कूड़े के ढेर के पास ले जाकर कह -यह दो कीड़े  ही तुम्हारे माता-पिता है।
अन्यायी पुत्र के माता-पता की दुर्गति होती है। थोड़े दिन के बाद तू यहाँ चींटी बनकर आनेवाला है।


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