Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-212




नृसिंह स्वामी कहते है -प्रह्लाद तू चिन्ता मत करना। तेरे पिता का उध्धार हो गया है।
और साथ में तेरी इक्कीस पीढ़ियाँ भी पवित्र हो गई है।

शुकदेवजी कहते है - राजन,अब तुम्हे विश्वास हुआ होगा -कि- भगवान के दंड में भी करुणा है।
भगवान जिन दैत्यों को मारते है उनका उध्धार भी करते है।
प्रह्लाद ने अपने पिता के मृतदेह का अग्निसंस्कार किया। ब्रह्माजी ने प्रह्लाद का राज्याभिषेक किया।
प्रह्लाद ने नृसिंह स्वामी को प्रणाम किया।

नारदजी ने प्रेम से प्रह्लाद के चरित्र की कथा धर्मराज को सुनाई,फिर भी नारदजी ने देखा कि धर्मराज के मुख पर ग्लानि छाई हुई थी। नारदजी ने धर्मराज से पूछा-तुम्हारे मुख पर आनंद क्यों नहीं है? तुम्हे क्या चिंता है?

धर्मराज कहते है-कि-पाँच वर्ष के प्रह्लाद का ज्ञान,वैराग्य और प्रेम तो देखो।
धन्य है प्रह्लाद और उनका बचपन और उनका प्रेम जिसके कारण प्रभु स्तम्भ में प्रकट हुए।
मै पचपन साल का हुआ फिर भी एक बार भी प्रभु के दर्शन नहीं हुए। मेरा जीवन पशु सा बीत गया।
धन के पीछे दौड़ा,भूख लगी तो खाना खाया,नींद आई तो सो गया,वासना जाएगी तो कामांध हुआ।
अवतार मनुष्य का मिला फिर भी प्रभु के हितार्थ एक  भी सत्कर्म नहीं किया। धिक्कार है मुझे।

मेरा जीवन कुत्ते के जैसा ही बीत गया। मै  अब भी प्रभु में लीन न हो सका,प्रभु-प्रेम में पागल न हो सका,
मुझे अभी तक भगवान नहीं मिल पाये,जब कि पॉंच साल के प्रह्लाद ने भगवान को पा लिया।
मुझे जगत में प्रतिष्ठा,मान मिला,किन्तु मै भगवान को न पा सका,अतः उदास हूँ।
भक्ति के बिना,भगवान के दर्शन के बिना,मेरा जीवन वृथा बीत गया।
इसी कारण से मुझे दुःख ह रहा है,मेरे चेहरे पर ग्लानि छाई हुई है। मेरा जीवन पशुवत बीत गया।
एक बार भी परमात्मा के दर्शन ने पा सका इसका मुझे दुःख है।

श्री रामकृष्ण परमहंस यह द्रष्टांत बार-बार देते थे।
एक बार एक नौका में कुछ पंडित यात्रा कर रहे थे।
बातों ही बातो में उन्होंने नाविक से पूछा -तुम कहां तक पढ़े लिखे हो?
नाविक- कैसी पढाई और लिखाई?मै तो बस नौका चलाना  जानता हूँ।
पंडित  - तुम्हे इतिहास की कोई जानकारी है? इंग्लैंड में कितने एडवर्ड थे? नाविक- मै इतिहास नहीं जानता।
पंडित-तब तो तेरी एक चौथाई जिंदगी बेकार हो गई। क्या तुझे भूगोल का ज्ञान है?
लंडन शहर की आबादी कितनी है? नाविक -मै भूगोल नहीं जानता।
पंडित -ओह!तब तो तेरी आधी जिंदगी बेकार हो गई। क्या तुझे साहित्य का ज्ञान है?
शेक्सपियर के कौन से नाटक  है? नाविक-मैंने साहित्य नहीं पढ़ा है।
इतने में नदी में तूफ़ान आया और नाँव इधर-उधर डोलने लगी।
नाविक ने उन पंडितो को पूछा -महाराज,लगता है की हमारी नौका पानी में डूब जायेगी।
क्या आप सब तैरना जानते है? सभी पंडितो ने कहा -नहीं-हम तैरना नहीं जानते।
नाविक- हरि-हरि ! आप तैरना नहीं जानते, तब तो आपकी सारी जिंदगी पानी में चली जाएगी।

तूफान में नाव पंडितों के साथ पानी में डूब गई। पर नाविक तैरता हुआ बाहर आ गया।


   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE