सच तो यह है कि-काम मनुष्य का उपभोग करके उसे क्षीण करता है।
जैस,मगर ने हाथी का पाँव पकड़ा था -उसी तरह काल जब आता है तो सबसे पहले पाँव ही पकड़ता है।
पाँव की शक्ति क्षीण हो जाए तो मान लो कि काल ने पकड़ लिया है।
जब काल आकर पकड़ेगा,तब तुम्हे पत्नी या पुत्र कोई छुड़ा नहीं सकेगा।
काल के मुख से केवल श्रीहरि का सुदर्शन चक्र ही छुड़ा सकता है।
मगर के मुख से छूटने के लिए हाथी ने बहुत प्रयत्न किए,परन्तु कुछ काम नहीं आया।
हथिनिया और बच्चों ने भी प्रयत्न किये,परन्तु कुछ काम न चला।
जब काल पकड़ता है,तो कोई भी प्रयत्न काम नहीं आता।
गजेन्द्र अब मर जायेगा,ऐसा सोचकर सब उसको छोड़कर चले गए।
गजेन्द्र अब अकेला रह गया। उसे यकीं हो गया कि अब मेरा कोई नहीं है।
मनुष्य जब अकेला हो जाता है,तब ज्ञान जागृत होता है। तब वह परमात्मा को आवाज़ देता है।
बूढ़ा जब बीमार पड़ता है और अधिक दिन बीमार रहेगा तो सब ऐसी इच्छा करेंगे कि अब यह बूढ़ा मर जाए तो अच्छा हो। बेटा छुट्टी लेकर घर आया है और बूढ़े की बीमारी बढ़ती जाए तो फिर वह कहेगा की मै जा रहा हूँ।
मेरी छुट्टी ख़त्म हो गई है। पिताजी को कुछ होए तो मुझे खबर देना।
जीव जब मृत्यु शैया पर अकेला होता है,तब उसकी हालत गजेन्द्र जैसी होती है।
अंतकाल में जीव को ज्ञान होता है,परन्तु तब वह ज्ञान उसके कुछ काम नहीं आता।
मनुष्य घबराता है कि मैंने मरने की कोई तैयारी नहीं की है,अब मेरा क्या होगा?
जहॉ जाकर वापस लौटना होता है,ऐसे सफर के लिए मनुष्य बहुत तैयारी करता है, परन्तु जहॉ से वापस ही नहीं अाना है,ऐसे सफर के लिए कुछ भी नहीं करता। परमात्मा को खुश करोगे तो तुम्हारा बेडा पार है।
अंतकाल में हरि लेने आये ऐसी इच्छा हो तो आज से ही “हाय हाय” करना छोड़ दो और हरि- हरि बोलने की आदत डालो। जब तक शरीर अच्छा है तब तक बाजी अपने हाथ में है। शरीर बिगड़ने के बाद कुछ नहीं हो सकता।
बहुत व्याकुल होने पर गजेन्द्र प्रभु की स्तुति करने लगा। पूर्व जन्म में उसने जो मन्त्र जप किया था वह उसे याद आता है। (गजेन्द्र की स्तुति की बहुत महिमा है। संसारी लोग को गजेन्द्र की स्तुति नित्य करनी चाहिए।)
"काल मुझे पकड़ने आया है। नाथ मेरी रक्षा करो। देवता और ऋषि भी तुम्हारे स्वरुप को नहीं जान सके तो फिर साधारण लोग तुम्हे कैसे पहचान सकेंगे या तुम्हारे रूप का वर्णन कर सकेंगे?
ऐसे दुर्गम चरित्र वाले हे प्रभु,मेरी रक्षा करो।
मै पशु हूँ। काल के पाश में फँसा हुआ हूँ। पशुतुल्य अविद्याग्रस्त जीव की अविद्यारूप फांसी को सदा के लिए काटने वाले,अत्यंत दयालु और दया करने में कभी भी देर न करने वाले नित्य मुक्त प्रभु की शरण में आया हूँ
और वंदन करता हूँ। "