Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-224


संसार के कोई भी स्वरुप में मन फंसे वह दैत्य है। दैत्य कामांध होकर मोहिनी के साथ आए है।
कामांध को विवेक नहीं रहता। मोहिनी के रूप में सभी दैत्यों को मोह हुआ है। सभी कहते है कि हमारे घर चलो। जिसके हाथ में अमृत-कुम्भ था उसके सामने मोहिनी ने स्मित किया।
उस दैत्य ने कहा -मै आपको कुम्भ देता हूँ। आप मेरे घर चलो मोहिनी  ने पूछा-इसमें क्या है ?
दैत्य ने कहा -इसमें अमृत है। और उसने अमृत-कुम्भ  उन्हें दे दिया।

मोहिनी ने कहा -आप सब अमृत के लिए तकरार करो वह मुझे अच्छा नहीं लगता।
आप सब शांति से बैठ जाओ। मै सभी को अमृत दूंगी।

मोहिनी ने देव और दानवों को अलग-अलग दो पंक्तियों में बिठाया।
मोहिनी ने प्रथम दैत्यों के पास जाकर कहा -मै आपका कल्याण करना चाहती हूँ किन्तु वह ऊपर का अमृत पानी जैसा है,अतः उसे देवो को पिला दू और नीचे का जो अच्छा अमृत है,वह आपको पिलाऊँगी। दैत्य मान गए।

मोहिनी देवी देवों को अमृत पिलाने लगी। कुंभ को कुछ टेढ़ा देखकर दैत्यों को शक होने लगा।
दैत्य राहु ने सोचा कि इसमें कुछ कपट है। इस नारी का विश्वास करके हमने बहुत बड़ी भूल की है।
ऐसा सोचता हुआ वह देव पक्ष में जाकर बैठा जिससे अपना भाग गँवाना न पड़े।
राहु देवो की पंक्ति में सूर्य और चन्द्र के बीच बैठ गया।

मोहिनीदेवी जान गई कि वह दैत्य है,किन्तु पंक्तिभेद न करने के हेतु से राहु को भी अमृत दिया।

जरा सोचो -जब इन्द्रादि देवों को अमृत मिल रहा था तब राहु वहाँ नहीं आया
किन्तु जब सूर्य-चन्द्र को अमृत मिल रहा था तो वह आ पहुँचा।
मन का स्वामी चन्द्र है। बुध्धि का स्वामी सूर्य है।
हाथोसे,जीभ से मनुष्य भक्ति करता है,तब विषयरूपी राहु बाधा डालने नहीं आता,
किन्तु जब मनुष्य मन से,बुध्धि से ईश्वर का ध्यान करता है तब विषयरूपी राहु बाधा डालने आता है।
मन और बुध्धि को जब भक्तिरूपी अमृत मिलता है,वह विषयरूपी राहु से देखा नहीं जाता,
अतः विषयरूपी राहु विघ्न डालने आता है। इस विषयरूपी राहु को ज्ञानचक्र से नष्ट कर दो।

राहु ने अमृत पी रहा ही था कि भगवान ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर उड़ा दिया।
राहु के अमृत पीनेसे  उसका सिर और धड़ दोनों अमर हुए। उसके राहु और केतु नाम के दो ग्रह हुए।

सुदर्शन चक्र- ज्ञानरूपी सुदर्शन चक्र से विषय-राहुका नाश किया।
मात्र ज्ञान और बुध्धि से विषय-राहु मरता नहीं है. ज्ञान और बुध्धि का अति विश्वास मत करो।
अकेले ज्ञान से कुछ भी नहीं हो सकता,क्योकि राहु अमर है। मात्र ज्ञान से विषयों का नाश नहीं होता।
ईश्वर की कृपा के बिना मन निर्विषयी नहीं हो सकता।
ज्ञान का आश्रय लेकर अति दिन बनोगे तो ईश्वर कृपा करके विषय-राहु को मारेंगे।


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