Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-226



शुक्राचार्य ने सोचा कि  बलि यदि अश्वमेध यज्ञ करे तो स्वर्ग का राज्य उसे हमेशा के लिए मिल जाये।
यज्ञ करने के लिए बलि राजा भृगुकच्छ(भरुच) आये। अश्वमेघ यज्ञ किया गया।

बलि राजा ने स्वर्ग जीत लिया। देवगन घबराकर भागते हुए अपने गुरु बृहस्पति के पास पहुँचे।
बृहस्पति ने कहा-बलि भृगुवंशी ब्राह्मणों का अपमान करेगा तो वह नष्ट हो जायेगा।
इधर देवो की माता अदिति दुःखी हुई कि उनके पुत्र दरिद्र हुए। कश्यप ऋषि के कारण पूछने से उनको सारी  बात बताई।अदिति ने कश्यप की अति सेवा करके वर माँगा कि मेरे पुत्रो को स्वर्ग का राज्य वापस मिले।

कश्यप ने कहा कि दैत्य ब्रह्मचर्य का पालन करते है। अतः भगवान भी नहीं मार सकते।
भगवान शक्ति से नहीं,युक्ति से देवो को सुखी करने का यत्न करेंगे।
इसी कारण वामनचरित्र में युध्ध की कथा नहीं है। भगवान ने भी बलि को नहीं  मारा।
कश्यप ने कहा -देवी तुम पयोव्रत करो। विधिपूर्वक व्रत करने से स्वयं भगवान तुम्हारे घर पुत्ररूप से आएंगे। विषयाकार वृत्ति का विनाश और कृष्णाकार वृत्ति स्थिर होने का यह व्रत है।

अदिति ने व्रत किया। पति-पत्नी बारह दिन सिर्फ दूध पर रहकर आदिनारायण का आराधना करते है।
सत्संग से गृहस्थाश्रम सफल होता है। सत्संग से मन शुध्ध होता है।
गृहस्थाश्रम में पति-पत्नी एकांत में बैठकर पवित्र ग्रन्थ का अध्ययन करे।
कीर्तन करे तो योगियों को जो आनंद समाधि में मिलता है वह आनंद घर में भी मिलता है।
शास्त्रों में गृहस्थाश्रम की प्रशंसा की गई है और वासना की निंदा की है।
कोई भी स्त्री-पुरुष बुरा नहीं होता पर उसके मन में छिपी कामवासना बुरी होती है।  
महात्माओं ने कई बार कहा है कि गृहस्थों का आनंद योगी के आनंद से भी श्रेष्ठ है।

साधु-सन्यासी ब्रह्म का चिंतन करके ब्रह्मरूप होंगे -पर ग्रहस्थाश्रमी परमात्मा को गोद में बिठाकर खिलाएंगे। साधु-सन्यासी जिसके घर का खाते है उसे थोड़ा पुण्य देना पड़ता है। जबकि ग्रहस्थाश्रमी किसी का मुफ्त नहीं खाते। गृहस्थाश्रम कुसंग से बिगड़ता है।

कश्यप-अदिति का गृहस्थाश्रम श्रेष्ठ था। वे पवित्र पूर्वक तपश्चर्या करते थे।
अतः प्रभु ने उनके घर में जन्म लेने का सोचा। आज भी अगर कोई स्त्री अदिति की तरह पयोव्रत करे और उसका पति कश्यप जैसा  बने तो भगवान उनके घर जन्म लेने के लिए तैयार है।
अदिति का अर्थ है अभेदबुध्धि,ब्रह्माकारवृत्ति। ऐसी वृत्ति से ही ब्रह्मा का प्रकटीकरण होता है।
कश्यप का अर्थ है मन। जिसकी मनो-वृत्ति ब्रह्माकार होती है वही कश्यप है।

शंकराचार्य ने शतष्लोकी में कहा है कि लोग त्वचा की मींमासा करते है,
किन्तु इस देहके सौंदर्य का कारणभूत आत्मा की मींमासा कोई नहीं करता है।
जगत नहीं बिगड़ा है पर मनुष्य की द्रष्टि-बुध्धि-मन बिगड़ गए है।
किसी को भी भोग दृष्टि से मत देखो,किन्तु भगवत-दृष्टि  से देखो।
दृष्टि  सुधरेगी,तो सृष्टि भी सुधर जाएगी। भागवत आँख और दृष्टि देती है।


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