Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-227



एक बार जनक राजा की सभा में अष्टावक्र मुनि पधारे। उनके आठ अंग टेढ़े-मेढ़े देखकर लोग हँसने लगे।
अष्टावक्र लोगो की हँसी पर हँसने लगे।
जनक राजा ने मुनि से पूछा -
महाराज,हम तो आपके विचित्र अंगों को देखकर हँस रहे है किन्तु आप किस बात पर हँस रहे है?

अष्टावक्र ने उत्तर दिया-मै तो समझता था कि  आपकी सभा में सभी ज्ञानी विराजते है
किन्तु आज मैने देखा कि सबके सब मूर्ख चमार है। आप सब मेरे चमड़ी के देह को देख रहे है।
यह तो मिटटी का है।  मेरी आत्मा को देखो। मै पवित्र ब्राह्मण हूँ। तुम सब मेरी आकृति को देखकर हँस रहे हो किन्तु मनुष्य की कृति को देखना है,आकृति को नहीं।
आकृति तो पूर्व जन्म के प्रारब्ध से प्राप्त होती है। मेरी कृति को देखो।

परमात्मा कृति को देखते है और मनुष्य आकृति को।
ज्ञानी पुरुष अनेको में एक को देखते है।
अष्टावक्र मुनि ने जो उपदेश जनक राजा को दिया वह अष्टावक्र गीता के नाम से प्रसिध्ध है।

एक महात्मा के पास सोने में से बनाए हुए गणेश और सोने का चूहा था।
महात्मा वृध्ध हुए तो उन्होंने सोचा कि मेरे बाद शिष्य मूर्ति को लेकर झगड़ा करेंगे।
अतः मै इसे बेचकर भगवान को भोग लगा दू। वे दोनों मूर्ति को लेकर बेचने गए।
गणेश की मूर्ति दो तोले की और चूहे की ग्यारह तोले की थी। सुनार चूहे की मूर्ति के दाम ज्यादा देने लगा।
महात्मा ने आश्चर्य से पूछा -अरे भाई,गणेश तो देव है,और चूहा जंतु,फिर भी तुम गणेशकी मूर्ति के दाम क्यों कम दे रहे हो? सुनार ने कहा-मै सोने की किंमत दे रहा हूँ ,देव या चूहे की नहीं।

ज्ञानी पुरुष आकार पर ध्यान नहीं देते। वे तो सृष्टि को निर्विकार भाव से देखते है।
आकार  से विकार  उत्पन्न होता है।

जिसकी आँख में पैसा है वह जहॉ भी जाए पैसा ही देखता है।
एक शेठ कश्मीर घूमने गए। वहाँ उन्होंने बहुत गुलाब देखे।  
उसके मन में यह भाव नहीं आया कि इन फूलों में श्रीकृष्ण विराजते है किन्तु उनके मन में द्रव्यभाव था,
अतः उसने सोचा कि यहाँ गुलकंद का उत्पादन शुरू कर दू तो बहुत लाभ हो सकता है।

दृष्टि को भगवतमय बनाओगे तो दृष्टि  जहाँ भी जाएगी परमात्मा दिखेंगे। गोपी की दृष्टि परमात्मा में थी।
वे जहा भी जाती थी,वहाँ कन्हैया के दर्शन होते थे।

गृहस्थाश्रम भक्ति में बाधक नहीं है। बाधक तो है गृह-आसक्ति।
संसार की कोई भी चीज़ में सच्चा सुख नहीं है। सच्चा आनंद एक मात्र ईश्वर में ही है।
संसार में ही सुख है,ऐसा जब तक मानते रहोगे,तब तक भक्ति में मन नहीं लगेगा।
जरा,सोचो-यदि सांसारिक विषय में ही सच्चा सुख हो,तो निद्रा-रूपी सुखकी आवश्यकता ही कैसे उपस्थित होती?
विषयों को त्याग कर,भूल कर निद्रा की इच्छा होती है,वही बताता है कि विषयों में सुख नहीं है।

अदिति शब्द शास्त्रों में बार-बार आता है। अदिति -अभेदबुध्धी -ब्रम्हाकार वृत्ति।
ब्रह्माकार मनोवृत्ति से माया का आवरण दूर होता है।
अंदरका निराकार और बहारका साकार स्वरुप एकत्र होकर प्रकट होगा,तभी भगवान वामन प्रकट होंगे।

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