उनकी वृत्ति नारायणकार हो गई,और उनके घर नारायण पधारे। अदिति सगर्भा हुई। नव मास पूर्ण हुए।
अदिति तन्मयता से प्रार्थना कि- भगवान कब प्रकट होंगे। आतुरता के बिना भगवान प्रकट नहीं होते।
परम पवित्र समय आया। कश्यप ऋषि मध्यान्ह समय गंगा संध्या करने करने गए है। अदिति घर में अकेली है। पवित्र द्वादशी का दिन है। माता अदिति के सम्मुख वामन भगवान प्रकट हुए। चारों ओर उजाला छा गया।
कश्यप भी वामन के दर्शन करने के लिए दौड़ते हुए आये है।
माता-पिता को ज्ञात कराने के लिए वामन ने अपने चतुर्भुज स्वरुप के दर्शन कराये।
अदिति-कश्यप ने जैसे दर्शन करे कि -चतुर्भुज नारायण चतुर्भुज स्वरुप अदृश्य हो गया
और वे सात वर्ष के बटुक बन गए। सुन्दर लंगोटी पहनी थी। मुख पर दिव्य तेज झलक रहा था।
वामनजी के दर्शन करने के लिए ब्रह्मादि देव भी वहाँ पधारे।
उन्होंने कश्यप-अदिति को बधाई देते हुए कहा -आपका गृहस्थाश्रम सफल हुआ है।
आज आप जगतपिता के भी माता-पिता बने हो।
वामनजी की बाललीला बिलकुल नहीं है। जब वे प्रकट हुए तब सात साल के थे।
उनको यज्ञोपवित देने का निश्चय किया गया।
यज्ञोपवित से ब्रह्मसम्बन्ध होता है। मंत्रदान करता हुआ पिता पुत्र से कहता है कि आज से वह अपना नहीं पर ईश्वर का हो गया। इस पवित्र विधि के बाद माता के साथ उसका अंतिम भोजन होता है।
इसके बाद पुत्र के माता-पिता बनते है सूर्यनारायण और गायत्रीदेवी। जनेऊ में हरेक देव की स्थापना की गई है।
आज के लोग यज्ञोपवित संस्कार आदि को नहीं मानते है।
लोग सभी संस्कार भूल गए है। मात्र विवाह संस्कार ही बाकी रह गए है
क्योंकि इसके बिना किसी से भी रहा नहीं जाता। ऋषियोंने संस्कार अपने कल्याणके लिए बनाये है।
तैत्तिर्य आरण्यक में जनेऊ बनाने की विधि बताई गई है। उसे हाथ से ही बनाना चाहिए।
सूत्र को ८६ बार लिपटाया जाता है।
वेद में कर्म और उपासना सम्बंधित ८६००० मन्त्र है,उन्हें पढ़ने का अधिकार यज्ञोपवीत संस्कार में मिलता है।
वैसे तो वेद के मन्त्र एक लाख है,किन्तु बाकि ४००० मन्त्र सन्यासी के लिए है।
जनेऊ के निर्माता है ब्रह्मा और उसे त्रिगुणातीत करने बाले विष्णु है।
इसका गठबंधन शिवजी करते है और अभिमंत्रित करती है गायत्रीदेवी।
वैसे तो यह संस्कार सातवे वर्ष में देना चाहिए,किन्तु ग्यारहवें वर्ष -तक भी देने की अनुमति है।
जनेऊ के एक-एक धागे में एक-एक देव की प्रतिष्ठा की जाती है,अतः इसको लोहे का स्पर्श न होना चाहिए,
इसमें चाबी नहीं बांधनी चाहिए। आज के ब्राह्मण जनेऊ में चाबी बांधकर फिरते है,जो ठीक नहीं है।
ऐसा करने से सभी देव-देवियाँ जनेऊ को छोड़कर चले जाते है।
संस्कार की परम्परा नष्ट हो गई है ,अतः प्रजा में समय और सदाचार का अभाव हो गया है।
हमारे कल्याण के हेतु से प्राचीन ऋषियों ने संस्कारो की रचना की थी।
वामनजी को यज्ञोपवित दी गई। उनको अदिति ने लंगोटी,धरती ने आसन,ब्रह्मा ने कमंडल,सरस्वती ने जपमाला तथा कुबेर ने भिक्षापात्र दिया। आज से त्रिकाल संध्या करने का आदेश दिया गया है।