Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-229



आजकल संध्या में ब्राह्मणों की अश्रध्धा हो गई है। इसलिए ब्राह्मणो का पतन हो रहा है।
संध्या नियमित और समय पर  करनी चाहिए। आजकल के ज़माने में यह बहुत कठिन है।
इसलिए त्रिकाल संध्या नहीं तो कम -से कम  प्रातः संध्या तो करनी चाहिए।
महाप्रभुजी हमेशा तीन बार संध्या करते थे।
रामायण में वर्णन है -रामजी नित्य संध्या करते थे। श्रीकृष्ण भी संध्या करते थे -ऐसा भागवत में लिखा है।

प्रातः संध्या से रात्रि का पाप नष्ट होता है।  मध्यान्ह संध्या से अन्न-जल का दोष नष्ट होता है।
त्रिकाल संध्या  की बहुत महिमा है। संध्या समय सूर्य का जप करते हुए गायत्रीमाता  का ध्यान करना है।
उनका आवाहन करना है। हे माता मेरे ह्रदय में पधारिये,मेरी रक्षा कीजिए।

गुरु बृहस्पति वामनजी को ब्रह्मचर्याश्रम का उपदेश देते है। बर्ह्मचर्य का पालन के बिना कोई महान नहीं हुआ है और होगा भी नहीं। स्पर्श से अनेक दोष उत्पन्न होते है। जिसे ब्रह्मचर्य का पालन करना है वह परस्त्री को शरीर और मन से भी भी स्पर्श न करे। यह तो ठीक है पर ऐसा भी लिखा है कि लकड़ी की बनी  पुतली को भी स्पर्श नहीं करना चाहिए। परस्त्री को माता मानना चाहिए।

लक्ष्मणजी का एक सुन्दर उदाहरण है।
लक्ष्मणजी चौदह वर्ष वन में रहे ,फिर भी उन्होंने सीताजी के मात्र चरणों पर दृष्टी रखी थी। सीताहरण के बाद रामजी ने सीताजी के मिले हुए गहने में से हार निकालकर  लक्ष्मणजी से पूछा -लक्ष्मण यह हार तेरी भाभी का है?लक्ष्मणजी बोले-मैंने यह हार कभी नहीं देखा है?मैंने तो भाभी के मुख के सामने भी नहीं देखा है। पर उनके पाँव के पायल को मै  जानता हूँ-क्योंकि हररोज में उन्हें प्रणाम करते हुए देखता था। कैसा आदर्श ब्रह्मचर्य-पालन !!

काम को जितना कठिन है इसलिए ब्रह्मचर्य की प्रशंसा की गई है।
जब व्यासजी भागवत की रचना कर रहे थे तो वे श्लोक की जाँच करने अपने शिष्य जैमिनी को देते थे।
जैमिनी ने नवम स्कंध का यह श्लोक देखा -"बलवनिन्द्रियगामो विद्वांसमपि कर्षति।"
(इन्द्रियाँ  इतनी बलवान होती है कि बड़े-बड़े विद्वानों को भी विचलित कर देती है।)

इस श्लोक पढ़कर जैमिनी ने सोचा कि व्यासजी ने इसमें कुछ भूल की है।
क्या इन्द्रियाँ विद्वानों को भी विचलित कर शक्ती है?
उन्होंने व्यासजी से कहा-इस श्लोक में “विद्वांसमपि कर्षति”के स्थान पर “विद्वासं नापकर्षति”लिखना चाहिए। व्यासजी ने कहा-मैने जो लिखा है वह ठीक ही है। इसमें कोई भूल नहीं है।

एक दिन जैमिनी संध्या करके उसका जल आश्रम के बाहर डालने गए। वहाँ उन्होंने पेड़ के नीचे बारिस से भीगी हुई  सुन्दर युवती देखी। उसका सौंदर्य देखकर जैमिनी विचलित हो गए।
जैमिनी ने उस युवती से कहा -यह कुटिया तुम्हारी ही है। बरसात में भीगने के बजाय अंदर आओ।
युवती बोली- पुरुष कपटी होते है। मै आपका विश्वास कैसे करू?


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