क्या मेरे पर विश्वास नहीं करोगी?मुझ जैसे तपस्वी पर भरोसा नहीं है तो फिर किस पर भरोसा करोगी?
अंदर आश्रम में आकर आराम करो। युवती आश्रम में आई।
जैमिनी ने बदलने के लिए कपडे दिए। बातों -बातों में जैमिनी का मन ललचाया। उन्होंने युवती से पूछा-क्या तुम्हारा विवाह हुआ है? युवती ने कहा कि-नहीं। तब-जैमिनी ने विवाह का प्रस्ताव रखा।
युवती ने कहा- मेरे पिताजी ने प्रतिज्ञा की है कि -जो पुरुष-खुद - घोडा बनकर मेरी पुत्री को
अम्बाजी के मंदिर दर्शन कराने ले जायेगा,उसी के साथ उसका विवाह करूँगा।
और मैंने पिताजी से कहा कि- आपके दामाद का मुँह काला कर उन्हें ले जाऊंगी।
जैमिनी ने सोचा कि चाहे घोडा बनना पड़े और मुँह काला करना पड़े किन्तु यह सुन्दर युवती तो मेरी हो जाएगी। वे सब कुछ करने तैयार हो गए।
जैमीनी ने घोड़ा बनकर उस युवती को अपने पर सवार कराके- अम्बाजी के मंदिर में ले आये।
मंदिर के बहार व्यासजी बैठे थे। यह दृश्य देखकर जैमिनी से पूछा कि कर्षति या नाकर्षति?
जैमिनी शरमा गए और बोले-कर्षति। गुरूजी आपका श्लोक सच्चा है।
क्षणभर भी असावधान न होना। असावधान होने से काम सर पर चढ़ जायेगा।
काम के कारण बड़े-बड़े ज्ञानी भटक गए है,तो फिर साधारण मनुष्य की बात ही क्या?
भर्तृहरिने भी कहा है कि-
मात्र वृक्ष के पत्ते और जल पीकर निर्वाह करने वाले ऋषियों को भी काम ने विचलित कर दिया है।
तो फिर जीभ का लालन करने वाला और (सिनेमा की) अभिनेत्रियों की रात-दिन पूजा करने वाला
आज का मनुष्य काम जितने की बात करे तो निरर्थक ही है।
ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला शक्तिशाली बनता है। श्रीकृष्ण को दुर्बलता पसंद नहीं है।
हरि का मार्ग शूरवीरों का है,कायरों का नहीं।
श्रुति भी कहती है- नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः। (आत्मा दुर्बल लोको को लभ्य नहीं है)
ब्रह्मचर्य का पालन करो और बलवान बनो।
वामनजी महाराज ने यज्ञोपवित धारण करने के बाद यज्ञ में आहुति दी। और फिर वामनजी भिक्षा मांगने जाते है। जगदम्बा पार्वती खुद वहाँ पधारी है। वामनजी कहते है -ओउम भगवती,भिक्षां देहि में।
पार्वती ने भिक्षा दी। वामनजी ने भिक्षा गुरूजी को अर्पण की।
वामनजी कहते है कि गुरूजी मुझे बड़ा यजमान बताओ तो मे बड़ी भिक्षा ला सकू।
गुरूजी कहते है -नर्मदा किनारे बलि राजा अश्वमेध यज्ञ कर रहे है।
उनसे तुम्हे अवश्य बड़ी भिक्षा मिलेगी। वहाँ जाओ।