Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-231



वामनजी ने उस दिशा में प्रयाण किया। पाँव में पादुका,हाथ में कमंडल,छत्र और दंड है। सिर्फ लंगोटी पहनी है।
कंमर पर मुंजमेखला,बगल में मृगचर्म,सिर पर जटा,गले में यज्ञोपित और मुख पर ब्रह्मतेज है।

कहते है कि-किसी भी अपरिचित व्यक्ति के सन्मुख जाओ,और तब अनायास ही नमन हो जाये तो
समझ लो कि -उस व्यक्ति में ईश्वर का अंश है।

अपरिचित होने पर भी वामनजी मार्ग में सभी को नमस्कार करते है। वे नर्मदा तट पर यज्ञमंडप में पहुंचे।
वहां उपस्थित ऋषि-समूह सोचने लगे कि आज तक ऐसा ब्रह्मतेजस्वी कभी नहीं देखा।
क्या साक्षात सूर्यनारायण तो इस रूप में नहीं आये है?यह कौन सा ब्राह्मणकुमार होगा?

एक बार शंकर स्वामी से पूछा गया था कि जगत में भाग्यशाली कौन है?
तब शंकर स्वामी ने उत्तर दिया था -
जो लंगोटी पहनता है,जितेन्द्रिय है ,सदा-सर्वदा प्रभु के साथ बाते करता और खेलता है। वह सबसे भाग्यशाली है।

इस अपरिचित बालक -वामनजी के विषय में ब्राह्मण कुछ सोच ही रहे थे कि -तब-
यज्ञ प्रधानाचार्य शुक्राचार्य ने वामनजी का स्वागत किया।
इस महा तेजस्वी बालक का शुक्राचार्य सहित सभी ऋषियों ने भी सत्कार किया।
ब्राह्मणो ने उस बाल ब्रह्मचारी का जब  स्वागत किया तो बलि राजा भी उन्हें देखने लगे।

उन्होंने सोचा कि मैंने आज तक कई ब्राह्मणों की सेवा की है किंतु ऐसा अभी तक नहीं देखा है।
उन्होंने वामनजी का स्वागत किया। उनका बाल स्वरुप देख खूब आनंदित हुए। वे वामनजी को महल में ले गए,सिंहासन पर बिठाया और रानी से पूजा का सामान लाने की आज्ञा दी।

बलि राजा की पत्नी का नाम विन्ध्यावली और पुत्री का नाम रत्नमाला। रत्नमाला वामनजी से प्रभावित होकर सोचने लगी कि जिस माता ने इन्हे अपना दूध पिलाया होगा,वह कितनी भाग्यशाली होगी। वामनजी का बालस्वरूप देख उन्हें वात्सल्यभाव आया। पर आगे चलकर जब  वामनजी का असली स्वरुप और पराक्रम देखा तो  उन्हें मारने की इच्छा हुई। रत्नमाला अपने इन दो मनोभावों को लेकर अगले जन्म में "पूतना"  बनी।

वामनजी महाराज के चरणों पर विंध्यावली जलधारा करने लगी,
बलि राजा  चरण धोने लगे और सभी ब्राह्मण पुरुषयुक्त का पाठ करने लगे।
बलिराजा चरण-सेवा करते हुए कहने लगे-आप जैसे पवित्र ब्राह्मण का चरणोदक मिलने से मै पवित्र हुआ
और मेरे पितरों को सद्गति मिल गई। मेरा यज्ञ सफल हुआ। आज मेरा कल्याण हुआ।

मै आपके चरण में बार-बार प्रणाम करता हूँ। बड़े पुण्यशाली माता-पिता को ही आप जैसा पुत्ररत्न प्राप्त हो
सकता है। मै सोचता हूँ कि अपना सब कुछ अर्पित करके मै वनवासी बनकर ईश्वर-भजन में लीन हो जाऊ।
महाराज-अगर आपको कुछ मांगने की इच्छा हो तो संकोच छोड़ कर मांगो।
राज्य,गाय,कन्या जो चाहिए वह मांगो मै आपको सब कुछ दूँगा। बलि राजा ने बार-बार यह प्रार्थना दुहराई।


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