Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-232

 


कहते है कि-जिसके पास से कुछ मांगना हो,तो पहले उसके पित्तरों की प्रशंसा करो।
वामनजी बलि राजा की प्रशंसा करते है।
राजन आपको धन्य है। प्रह्लाद के वंश में आपका जन्म हुआ है। तुम्हारे दादाजी प्रह्लाद महान भगवद भक्त थे। परमात्मा को उनके लिए स्तम्भ में से प्रकट होना पड़ा था। आपके पिता विरोचन भी बहुत उदार थे।
एक ब्राह्मण को उन्होंने आयुष्य का दान किया था।

जब उनके पास इन्द्र ब्राह्मण का रूप लेकर आये थे और उन्हें कहा कि -
मेरी आयु अब थोड़ी ही बाकी है। मेरी मृत्यु से मेरी पत्नी विधवा हो जाएगी। अपने  आयुष्य का दान मुझे दीजिये। दान मांगने आए ब्राह्मण को निराश कैसे किया जा सकता है ?
तब  आपके पिता ने अपने आयुष्य का दान कर दिया था।

आपके पितामह महान वीर थे।
राजन-आप में अपने पितामह का बल,वीरता और शक्ति है। आप में अपने पितामह प्रह्लाद सी भक्ति है और
पिता विरोचन सी उदारता भी। पित्तरों के गुण आपने  एक साथ पाये है। आप बड़े भाग्यवान है।
अपनी पित्तरों की प्रशंसा सुनकर बलि राजा ने वामनजी से कहा -
महाराज,आप जो चाहे वह माँगो। मै अपना सब कुछ देने को तैयार हूँ।

बलि राजा को वामनजी ने वचनबध्द कर लिया और कहने लगे-राजन,मै लोभी नहीं संतोषी ब्राह्मण हूँ।
मै तो अपने पाँव से नाप कर मात्र तीन कदम तक की भूमि चाहता हूँ।

बलि राजा सोचने लगे कि  यह बालक माँगना नहीं जानता। वे कहने लगे,महाराज आपने मात्र इतना ही क्यों माँगा। मै तीन कदम तो क्या तीन गाँव दे सकता हूँ। यह जग प्रसिध्ध बात है कि पूजन आदि करके जिस ब्राह्मण को मै दान देता हूँ,उसे अन्य किसी से भी कुछ भी मांगने की आवश्यकता नहीं रह जाती। मेरा दान स्वीकार करके किसी अन्य के पास आपको मांगना पड़े तो मेरा अपमान होगा। मैंने आपको देखते ही जान लिया था कि आप संतोषी ब्राह्मण है किन्तु केवल तीन कदम भूमि देने में मुझे संकोच हो रहा है।

वामनजी ने कहा -राजन !आप धन्य है। आप तो ऐसा ही कहेंगे उसमे कोई आश्चर्य नहीं है। आप तो उदार है लेकिन मांगते हुए मुझे भी कुछ सोचना चाहिए ने?लोभ से लोभ बढ़ता है और संतोष से संतोष। संसार के सभी भोग पदार्थ प्राप्त कर लेने पर भी संतोष और वैराग्य के अभाव में शान्ति नहीं मिलेगी। संग्रह वृत्ति से ब्राह्मण दान न ले। अगर संग्रह वृत्ति से दान लेगा तो यजमान भी पाप का भागी होगा। अति संग्रह विग्रह को जन्म देता है। मुझे अधिक की आवश्यकता नहीं है।

भागवत में लिखा है कि अपनी आय के पांचवे हिस्से का दान करना चाहिए।
मनु महाराज ने दसमांश का दान करने को कहा है।
घर में आने वाला सारा धन शुध्ध नहीं होता। दान से उसकी शुध्धि होती है।
कभी घर पर आया हुआ -भिखारी मात्र भीख मांगने के लिए नहीं,कुछ उपदेश देने के लिए भी आता है।
"मैंने गत जन्म में किसी को कुछ भी नहीं दिया था,इसलिए मेरी ऐसी दशा हुई है।
तुम नहीं दोगे  तो तुम्हारी भी मेरी जैसी दशा होगी।"

वामनजी ने कहा -संध्या गायत्री करने के लिए-मै  जमीन मांग रह हूँ। तुम्हारी जगह में बैठकर मै सत्कर्म करूँगा तो तुम्हे उसका पुण्य मिलेगा। मै ब्रह्मचारी हूँ इसलिए सिर्फ तीन कदम भूमि का मुझे दान दो।


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