Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-236



वामनजी कहते है -मेरा तीसरा चरण अभी बाकी  है। बलि बंधन में आया है। उसे बांधो।
पति की भूल विन्ध्यावली ने आकर सुधारी है। उनको मत बांधो। मेरे पति की बोलने में भूल हुई है।
नाथ-आपको कोई क्या दान देगा? मेरे पति अभिमान से बोले है की मैंने दान दिया है।
नाथ-आप सर्वस्व के मालिक है। मेरे पति  के बोलने  की भूल के लिए मै क्षमा माँगती हूँ।

विन्ध्यावली अब अपने पति से कहती है -आप मत घबराना। ईश्वर को प्रार्थना करो। उनका दिया हुआ ही उन्हें वापस देना है। यह शरीर अभी बाकी है। भगवान से कहो -कि एक चरण -जो  बाकी है वह मेरे मस्तक पर रखो।

मस्तक में बुध्धि होती है और बुध्धि में सूक्ष्म रूप से काम समाया होता है (सकाम-बुध्धि)।
उसको (सकाम-बुध्धिको) नष्ट करने के हेतु से ही अपने मस्तक पर चरण रखने की प्रार्थना बलिने की।
ऐसा होने से (मस्तक पर प्रभु के चरण रखने से) सकाम बुध्धि नष्ट होती है।
गोपियाँ भी गोपी गीत में यही भावना करती है कि -उनके मस्तक पर उनका कर-कमल हो।

बलि राजा बोले -मेरे मस्तक पर आपका तीसरा चरण रखो। मेरी भूल हुई है। आपका जो है वही आपको  दे रहा हूँ। मुझने बोलना नही आया। मुझे क्षमा करो। आप सचमुच हम असुरो के भी परोक्ष गुरु है
क्योंकि हमारे बड़प्पन (अभिमान) की दीवार तोड़कर आपने हमारी आँखे खोल दी।

इतने में बलि राजा के पितामह प्रह्लादजी का आगमन हुआ।
प्रह्लादजी भगवान से कहते है -आपने मेरे पौत्रको दिया हुआ इन्द्रपद छीन लिया और लक्ष्मी-हीन भी कर दिया। ऐसा करके भी आपने उन पर बड़ा अनुग्रह किया है। ऐसा मै मानता हूँ।
आपने ब्रह्माजी को कहा था -मै जिस पर कृपा करता हूँ उसका धन मै ले लेता हूँ,
क्योंकि धन से पुरुष मद और अभिमानी बनता है। फिर मेराऔर लोगो का अपमान करने लगता है।

दाता को कभी अभिमानी नहीं बनना चाहिए। जो वंदन करता है वह प्रभु को बंधन में रख सकता है।
शरीर का अर्पण अर्थात मेरापन,अहंकार,अभिमान का अर्पण।
यदि दाता दीन (अहंकार विहीन) नहीं बनेगा तो उसका दान सफल नहीं होगा।
बलि राजा के मन में जब दैन्य आया तो परमात्मा का ह्रदय पिघल गया।
वामनजी कहते है -तुमने मुझे सर्वस्व का दान दिया सो मै तुम्हारा ऋणी हुआ।
नम्रता,दैन्य आने पर परमात्मा ऋणी हुए।

उन्होंने बलि राजा से कहा - मैने इन्द्र को स्वर्ग का राज्य दिया है,किन्तु पाताल का राज्य तुम्हे देता हूँ।
आज से तुम्हारे प्रत्येक द्वार पर मै चौकी करूँगा।

बलि राजा को आनंद हुआ। पातालका राज्य अच्छा है। वहां परमात्मा का हमेशा सानिध्य रहेगा।

बलि राजा की कथा में थोड़ा रहस्य है। बलि राजा जीवात्मा है और वामन परमात्मा।
बलि राजा के गुरु है शुक्राचार्य।
इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति शुक्र की सेवा-वीर्य और ब्रह्मचर्य की रक्षा करता है और जो सयंमी है,
उसे कोई भी मार नहीं सकता। बलि राजा को कोई मार नहीं सकता।
भक्त शुक्र की सेवा करके जब बलि बनता है तभी भगवान आँगन में आते है।
बलि राजा निष्पाप,बलवान और सदाचारी है।

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