Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-240-Skandh-9



स्कंध-९-(नवम स्कन्ध )
इस स्कंध की शुरुआत करने से पहले -
अब तक के स्कन्ध के तत्वज्ञान का यहाँ थोड़ा मनन करते है ।

(१) प्रथम स्कंध में  अधिकार लीला का वर्णन है।
शिष्य का अधिकार बताया गया। जिसका अधिकार सिध्ध होता है,उसे संत मिलते है।
मृत्यु सिर पर है,ऐसा सुनकर परीक्षित राजा का जीवन सुधर गया। विलासी जीवन का अंत आया।
विलासी जीवन का अन्त और भक्ति सिध्ध हो पाये,तभी जीव अधिकारी बनता है।
अधिकार के बिना ज्ञान का उजाला नहीं है। अनाधिकारी ज्ञान का दुरूपयोग करता है।
वैराग्य धारण करके जो बाहर निकलता है,वह संत बनता है और उसे अपने आप  सद्गुरु मिलते  है।
संत के घर  संत ही आते है।

(२) द्वितीय स्कन्ध में ज्ञानलीला है। मनुष्य मात्रका क्या कर्तव्य है? जिनका मृत्यु नजदीक है,
उन व्यक्ति का क्या कर्तव्य है? इन जैसे प्रश्नों की चर्चा करके ज्ञान दिया गया।

(३) तृतीय स्कंध में सर्ग-लीला है।
ज्ञान को क्रियात्मक करने का बोध दिया। ज्ञान को जीवन में कैसे उतारना? वह बताया।
ज्ञान शब्दात्मक(मात्र शब्दोंवाला) है तक तक शान्ति नहीं मिलेगी।
जब वह ज्ञान क्रियात्मक,सक्रिय होगा तभी शान्ति मिलेगी।

(४) चौथे स्कंध में विसर्गलीला है।
ज्ञानको  जीवनमें उतारनेवालेका चारों पुरुषार्थ सिध्ध होते है। इसलिए चौथे स्कन्ध में चार पुरुषार्थ की कथा है।

(५) पाँचवा स्कन्ध स्थिति लीला का है।
गुरु द्वारा प्राप्त ज्ञान को जीवन में उतारोगे तभी स्थिरता प्राप्त होगी।
ज्ञानी और भागवत परमहंस के लक्षण बताए है। सर्व के मालिक एक परमात्मा है।

(६) छठ्ठा स्कन्ध पुष्टि लीला-अनुग्रह लीला का वर्णन है।
जो साधना करता है उसी पर प्रभु कृपा करते है।

(७) सातवें स्कन्ध में वासना लीला का वर्णन है। मनुष्य प्रभु कृपा का उपयोग न करे तो वासना बढ़ती है।
उसमे वासना जागती है।

(८) आँठवे स्कंध में मन्वन्तर लीला का वर्णन है।
असद वासना दूर करने के लिए -संतों के चार धर्म -इस स्कंध में बताये है।

(९) अब -नवें स्कंध में सूर्यवंश और चन्द्रवंश -के दो प्रकरण आएंगे।
सूर्य बुध्धि का मालिक है। चन्द्र मन का मालिक है। बुध्धि को शुध्ध करने के लिए सूर्यवंश में रामचन्द्रजी और
मन की शुध्धि करने के लिए चन्द्रवंश में श्रीकृष्ण का चरित्र कहा गया है।


   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE